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________________ वर्णी-अभिनन्दन-ग्रन्थ स्थापित है वह कन्नौजके राजा देवपालसे प्राप्त की गयी थी, जिसे यशोवर्मनके पिता हर्षदेवने हराया था । मंगलेश्वरका मन्दिर-यह लक्ष्मणजीके मन्दिरके बगल में दक्षिणकी अोर स्थित है । इसमें एक विशाल शिवलिंग स्थापित है, जिसकी आज भी बड़ी श्रद्धा और भक्तिसे पूजा होती है। इस मन्दिरमें कलाकी कोई विशेष चीज दर्शनीय नहीं। इस समूहमें और भी कई छोटे-छोटे मन्दिर हैं परन्तु विशेष उल्लेखनीय नहीं हैं। पूर्वी समूह यह समूह खजुराहा ग्रामके अति सन्निकट है। इसमें तीन वैदिक मन्दिर हैं तथा तीन जैन मन्दिर । वैदिक मन्दिरों में ब्रह्मा, वामन, तथा जावारीके मन्दिर हैं। इसके अतिरिक्त हनुमानजी की एक बहुत विशाल मूर्ति है। इस मूर्तिकी पीढ़ीके नीचे एक छोटा सा लेख है जिसमें हर्ष सम्वत् ३१६ पड़ा है जो ९२२ ई० के बराबर होता है। खजुराहाके अबतक मिले हुए शिलालेखों में यह सबसे प्राचीन शिलालेख है। सल्लक्षणवर्मनने जिसका कि नाम चन्देल वंशावलीमें दिया जा चुका है, पहली ही बार अपने तांबेके द्रव्योंमें हनुमानजी की मूर्ति अंकित करायी थी। इससे पहले हनुमानजी की कोई स्वतंत्र मूर्ति भारतीय कलामें नहीं मिलती। अतः हनुमानजी की मूर्तिके प्रचारका श्रेय चन्देलोंको ही है। ब्रह्माका मन्दिर- यह मन्दिर खजुराहा सागरके तीरपर स्थित है तथा नवीं और दरवीं शताब्दीके बीचका बना हुआ है । इसमें जो मूर्ति स्थापित है वह शिवकी है, परन्तु लोगोंने उसे ब्रह्माकी मूर्ति समझ रक्खा है। इसकी भी कला उच्चकोटि की है। वामन मन्दिर-यह ब्रह्माके मन्दिरसे एक फलोंग उत्तर पूर्वकी अोर बना हुआ है । यह रूप रेखामें जगदम्बा तथा चित्रगुमके मन्दिरके समान है, परन्तु उन दोनोंसे कहीं अधिक विशाल है । इसके अन्दर वामन भगवान्की चार फीट आठ इंच ऊंची एक सुन्दर मूर्ति स्थापित है। जापारी मन्दिर --यह खजुराहा ग्रामके समीप खेतोंके बीचमें स्थित है। अन्य मन्दिरोंकी अपेक्षा यद्यपि कुछ छोटा है परन्तु कलाकौशलमें कम नहीं । इसके अन्दर विष्णु भगवान्की चतुर्भुजी मूर्ति स्थापित है । यह दसवीं शताब्दीका बना हुआ है। जैन मन्दिरोंमें घंटाई, आदिनाथ, तथा पारसनाथके मन्दिर हैं। घंटाई मदिर-यह खजुराहा ग्रामके दक्षिण पूर्वकी ओर है । इसके स्तम्भोंमें घंटियोंकी देल बनी हुई है । अतः इसे घंटाई मन्दिर कहते हैं । इसका भी कला कौशल देखने योग्य है । आदिनाथ मन्दिर—यह घंटाई मन्दिरके हाते के अन्दर ही दक्षिण उत्तरकी ओर स्थित है। यह भी देखने योग्य है। इसमें जो मूर्ति स्थापित थी वह लापता है। पारसनाथ मन्दिर-जैन मन्दिरों में यह सबसे विशाल है । इसमें पहले वृषभनाथकी मूर्ति स्थापित थी परन्तु अब उस मूर्तिका पता नहीं है । उसके स्थान पर पारसनाथकी मूर्ति स्थापित कर दी गयी ५३२
SR No.012085
Book TitleVarni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhushalchandra Gorawala
PublisherVarni Hirak Jayanti Mahotsav Samiti
Publication Year1950
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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