SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 616
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ खजुराहाके खंडहर नगरोंका उल्लेख किया है । टेमसिससे कालिंजरका बोध होता है जो कि बुन्देलखंडके अन्तर्गत ही है । वैदिक साहित्यमें कालिंजरको तापस स्थान कहा है और इस तापस शब्दसे ही टेमसिस बना हुआ प्रतीत होता है। इसी तरह कुर्पोनिधि भी खजुराहाका रूपान्तर प्रतीत होता है जिसके प्रमाण भी मिलते हैं । ___टालमीके पश्चात् चीनी यात्री हुएनशांगने भी अपने भारत-यात्रा वर्णनमें इसका उल्लेख किया है। हुएनशांगने ६३०-४३ई० के बीच भारतका भ्रमण किया था। उसने बुन्देलखंडका जिसे उस समय जेजाकभुक्ति कहते थे चीचेट करके वर्णन किया है और उसकी राजधानी खजुराहा बतलायी है । खजुराहा नगरका घेरा उसने १६ क्ली अर्थात् अढ़ाई मीलसे कुछ अधिक बतलाया है। उसने यहांकी पैदावारका भी जिक्र किया है । यह भी लिखा है कि यहांके निवासी अधिकतर अबौद्ध हैं । यद्यपि यहां दर्जनों बौद्ध बिहार हैं तब भी बौद्ध लोग बहुत कम संख्यामें हैं । मन्दिर जब कि ब्राह्मण पलते हैं । यहांका राजा भी ब्राह्मण है परन्तु वह बौद्ध-धर्ममें बहुत श्रद्धा रखता है । हएनशांगके पश्चात् खजुराहाका उल्लेख महमूद गजनवीके साथी पाबूरिहाके यात्रा वर्णनमें मिलता है। आबूरिहा यहां सन् १०२२ में आया था । उसने खजुराहाका नाम कजुराहा करके लिखा है और उसे जुझोतकी राजधानी लिखा है । श्रावरिहाके पश्चात् सन् १३१५ के लगभग इब्नबतूता यहां आया । उसने खजुराहाका नाम खजुरा लिखा है। यहां के एक तालाबका भी उल्लेख किया है जिसको उसने एक मील लम्बा बतलाया है। वह लिखता है कि इस तालाबके किनारे कितने ही मन्दिर बने हुए हैं जिनमें जटाधारी योगी रहते हैं । उपवासों के कारण उनका रंग पीला पड़ रहा है। बहुतसे मुसलमान भी उनकी सेवा करते हैं और उनसे योगविद्या सीखते हैं। इन विदेशी यात्रियोंके उल्लेखोंके अतिरिक्त चन्देल वंशके राजकवि चन्दके महोबाखंड नामक काव्य ग्रन्थमें भी खजुराहाका अच्छा वर्णन मिलता है । स्मरण रहे कि यह चन्द पृथ्वीराजरासोके लेखक चन्दबरदाईसे पृथक थे । चन्देल कट्टर वैदिक थे और शैवमतके अनुनायी थे । शिवकी भार्या मनियादेवी इनकी कुलदेवी थी। चन्देलोंके सम्पूर्ण राज्यमें मनियादेवी की बड़ी आवभगतसे पूजा होती थी। तब भी चन्देल दसरे मतोंके विरोधी न थे। वे जैन तथा बौद्धमतमें भी श्रद्धा रखते थे। इनका आदि स्थान मनियागढ़ था जो आज भी केन नदीके किनारे पर राजगढ़के समीप एक पहाड़ीपर खड़ा हुआ है। कहा जाता है, इन्होंने परहार या प्रतिहारोंसे राज्य छीना था जिनकी राजधानी मऊसहनियां थी। मऊसहनियां भी नयागांव और छतरके बीचमें आज भी खड़ी है । उत्तरीभारतके सम्राट हर्षवर्धनकी मृत्युके पश्चात् इन्होंने अपना राज्य इस सारे भूखंडमें, जिसे आज बुन्देलखंड कहते हैं, फैला लिया । ५२९
SR No.012085
Book TitleVarni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhushalchandra Gorawala
PublisherVarni Hirak Jayanti Mahotsav Samiti
Publication Year1950
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy