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________________ वर्णी अभिनन्दन ग्रन्थ की प्रगतिशील धारा से बिल्कुल अलग-थलग पड़ा हुआ है। जहां संयुक्तप्रांत में पांच-पांच विश्वविद्यालय हैं वहां इस प्रांत में केवल एक ही यानी सागरका । यदि कभी कोई दूसरा विश्वविद्यालय यहां कायम किया जाय तो वह कृषि विषयक होना चाहिये । पुराने विश्वविद्यालयों की नकल करने से कोई फायदा नहीं । कुछ वर्ष पहले स्वर्गीय प्रोफेसर गीडीजने मध्यभारत के लिए एक विश्वविद्यालय की योजना बनायी थी, जिसमें कृषिको विशेष स्थान दिया गया था । यदि कोई इस प्रकार का विश्वविद्यालय यहां स्थापित हो जाय तो उसके द्वारा इस प्रान्त का ही नहीं मातृभूमि का भी विशेष हित हो सकता है । वर्त्तमान दान आज भी अनेक क्षेत्रों में विन्ध्यप्रदेश मातृभूमि का मुख उज्ज्वल कर रहा है । गुप्तबन्धु ( कविवर मैथिलीशरणजी गुप्त और श्री सियारामशरणजी ) अपनी साहित्यसेवा के लिए भारतव्यापी कीर्ति के योग्य अधिकारी सिद्ध हो चुके हैं, और बन्धुवर वृन्दावनलालजी वर्मा ने जो कुछ लिखा है उसके पीछे एक दृढ़ व्यक्तित्व, सुलझे हुए दिमाग तथा सुसंस्कृत स्वभाव की मनोहर झलक विद्यमान है । स्वर्गीय मुंशी अजमेरी जी का नाम इन सब से पहले आना चाहिए था । बड़े दुर्भाग्य की बात है कि उनकी साहित्यिक रचनाओं का और उनसे भी बढ़कर उनके मधुर व्यक्तित्व का मूल्य अभी तक ग्रांका नहीं गया । यदि उनकी समस्त रचनाएं एक साथ संग्रह में प्रकाशित कर दी जातीं और उनके संस्मरणों की एक पुस्तक छप जाती तो यह कार्य हमारे लिए सम्भव हो जाता । बन्धुवर गौरीशङ्करजी द्विवेदी, श्री कृष्णानन्दजी गुप्त, श्री नाथूरामजी माहौर, श्री घासीरामजी व्यास, सेवकेन्द्रजी, रामचरणजी हयारण, श्री प्रियदर्शीजी, हरिमोहनलाल वर्मा, श्री चंद्रभानु जी तथा अन्य बीसियों कार्यकर्ताओंों की साहित्यिक सेवाऐं उल्लेख योग्य हैं । श्री व्यौहार राजेन्द्रसिंहजी एम० एल० ए० इसी प्रान्त के हैं और हिन्दी के सर्वश्रेष्ठ प्रकाशक श्री नाथूरामजी प्रेमी भी । कितने ही व्यक्तियों के नाम यहां छूटे जा रहे हैं, पर इसका अभिप्राय यह नहीं है कि उनकी रचनाएँ या सेवाएं नगण्य हैं । श्रीमान् श्रोछेश के देवपुरस्कार, उनकी वीरेन्द्र केशव - साहित्य परिषद, समय-समय पर दिये हुए उनके सहृदयतापूर्ण दान तथा उनके उत्कट हिन्दी प्रेमके विषयपर लिखने की आवश्यकता नहीं । उसे सब जानते ही हैं । क्षमाप्रार्थी हैं हम उन कार्यकर्ताओं से जिनके नाम छूट गये हैं। हां, अपने निकटस्थ साहित्यिकों के नाम हमने जानबूझ कर छोड़ दिये हैं । हौकी— हौकी के खेल में तो यह प्रान्त भारत में ही नहीं समस्त संसार में अपना सानी नहीं रखता । सुप्रसिद्ध खिलाड़ी ध्यानचन्द और रूपसिंह इसी प्रान्त के हैं और भारत की सर्वश्रेष्ठ हौकी टीम श्री भगवन्त • क्लच तो टीकमगढ़ की है। ५२०
SR No.012085
Book TitleVarni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhushalchandra Gorawala
PublisherVarni Hirak Jayanti Mahotsav Samiti
Publication Year1950
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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