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________________ वर्णी-अभिनन्दन-प्रन्थ ब द=(अंबं) तथा वफ-स (अं-बं) कल्पना कीजिये कि इस सम नान्तर चतुर्भुजका श्रायतन क है । अर्थात्क= " (अं-बं)२४३६ = ग (अं-बं)२४ उक्त रचनामें प्रदर्शित चारां चतुष्फलकोंमेंसे प्रत्येकके भुजाके मध्यबिन्दुमें से समतल ऊर्ध्वाकार तल खींचकर तीन भाग करिये। इस प्रक्रिया द्वारा ब द ह ए गइ फ समान चार पिंड तथा पाठ चतुष्फलक और उत्पन्न होते हैं। इन चारों पिण्डोंको एक साथ रखनेसे एक समानान्तर चतुर्भुज बनता है जिसका अायतन पूर्वोक्त (स० च०) के आयतनका चतुर्थ भाग होता है अर्थात् इसका आयतन ? क है। इस क्रमसे उत्तरोत्तर निम्नांकित पायतन पाते हैं क, क, २ इनका योग होगाक (१++++......) ३ यतः क (अं-ब)२ के समान मान लिया गया है अत: = (अं-ब) २ हं = दोनों चतुष्फलोंका अायतन । पूर्वोक्त विधिसे उत्तरोत्तर रचना क्रम चालू रखनेसे चतु फलकों का आयतन घटता ही जाता है । और अनन्त रचना करनेसे बिन्दु मात्र रह जाता है। अतएव धवलाकारने ठीक ही कहा है कि चतुष्फलक बिन्दु मात्र रह जानेके कारण उनका अायतन शून्य हो जाता है । अतएव अब स द तथा आ बा सादा दोनों चतुष्फलकों में प्रत्येकका श्रायतन होता है ( अं-बं) xहं = x.(अं-नं )x( अं-बं)xहं =3x आधारका वर्गxउत्षेध इस विवेचनमें उल्लेखनीय तथ्य ये हैं - (१) रचनाके अनन्त अनुक्रमका निश्चित प्रयोग तथा (२) अनन्त श्रेणीके योगके गुरुका निश्चित प्रयोग। ५०२
SR No.012085
Book TitleVarni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhushalchandra Gorawala
PublisherVarni Hirak Jayanti Mahotsav Samiti
Publication Year1950
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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