SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 587
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वर्णी अभिनन्दन ग्रन्थ विकृतिका चतुर्थ सिद्धान्त--यदि समानान्तर षड्फलकके एक फलकको उसके धरातलपर हटाया जाय तथा सामनेके फलकको तदवस्थ रखा जाय तो स० षडफलकके श्रायतनमें कोई अन्तर नहीं पड़ता है। इसके अनुसिद्धान्त रूपसे हम कह सकते हैं-- ६--श्राधारके लेत्रफलमें ऊंचाईका गुणा करनेसे समपार्श्व (Prism) का आयतन अाता है । १०--आधारके क्षेत्रफलमें ऊंचाईका गुणा करनेसे सम-अनुप्रस्थ परिच्छेदयुक्त वेलनका आयतन निकलता है। ११--आधारके तृतीयांशके क्षेत्रफलमें ऊंचाईका गुणा करने पर चतष्फलकका श्रायतन निकलता है। कारण त्रिकोणात्मक आधार पर बनाया गया समपार्श्व तीन समान चतुष्फलकोंमें विभक्त किया जा सकता है। उपरि अंकित प्राकृतिमें चतुष्फलकका आयतन निकालनेके प्रकारका दूसरा विकल्प भी बताया है। १२–श्राधारके तृतीयांशके वर्गमें ऊंचाईका गुणा करने पर शूचीस्तम्भका आयतन आता है। रचना--शूचीस्तम्भको अनेक चतुष्फलकोंमें विभक्त किये जा कनेके कारण उक्त निष्कर्ष अाता है। १३--सम-शंकुके आधारके क्षेत्रफलमें ऊंचाईका गुणा . अ. करनेपर उसका आयतन आता है। रचना--आधारकी त्रिज्याके सहारे ऊर्ध्वाकार रूपसे शीर्षतक (आकृत १५) शंकुको काटिये, फिर इसे ऐसा बढ़ाइये कि आधार आकृति ६ के त्रिभुजमें परिवर्तित हो जाय । इस प्रकार शूचीस्तम्भ चतुष्फलकमें परिवर्तित होता है । इस चतुष्फलकका अायतन आधारके तृतीयांशके क्षेत्रफलमें ऊचाईका गुणा करने पर आता है । और उक्त निष्कर्षकी पुष्टि करता है। यह परिणाम विकृति-नियम चारके अनुसार सम-विषम, वर्तुल-अवर्तुल सभी शंकुओं के लिए उपयुक्त है। १४--यतः आधारकी समतल समानान्तर रेखासे शंकुको (बाकी ) काटनेसे छिन्न-शंकु बनता है अतः उसका अायतन व्यवकलन पद्धतिसे निकाला जा सकता है । छिन्न-शंकु ज्ञात होनेसे उस मूल शंकुका पता अवश्य लग जाना चाहिये जिसे काटकर छिन्न-शंकु बना है। किन्तु धवलाकार ऐसा न करके उस रचना तथा विकृतिके सिद्धान्तोंके सहारे छिन्न-शंकुका सीधा आयतन निकालते हैं जिसके पुनर्निर्माण का मैंने यहां प्रयत्न किया है। ५००
SR No.012085
Book TitleVarni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhushalchandra Gorawala
PublisherVarni Hirak Jayanti Mahotsav Samiti
Publication Year1950
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy