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________________ भारतीय गणितके इतिहासके जैन-स्रोत लेकर दोनों (तल पर तथा ऊपरकी ओर ) दिशाओं में ठीक बीचसे काटने पर चार आयतचतुरस्र तथा आठ त्रिभुज क्षेत्र होते हैं।' इनमेंसे चारों अायत चतुरस्र क्षेत्रोंका घनफल पूर्वोक्त (ऐसे ही) दो अायत चतुरस्रोंके घनफलका एक चौथाई होता है। चारों क्षेत्रोंमें ( दो दो को पलट कर मोटाईके अविरोधसे एक साथ रखने पर (सबकी) मोटाई तीन राजु होती है ( तथा ) पूर्वोक्त क्षेत्रोंकी लम्बाई तथा ऊंचाईकी अपेक्षा इनकी लम्बाई ऊंचाई अाधी ही पायी जाती है। चारों क्षेत्रों की मिलाकर भी मोटाई किस कारणसे तीन राजु मात्र होती है ? प्रकृत क्षेत्रोंकी मोटाई पूर्वोक्त क्षेत्रोंकी अपेक्षा आधी मात्र होनेसे तथा इनकी ऊचाई भी पूर्वोक्त क्षेत्रोंसे आधी मात्र दिखनेसे । २ अब शेष अाठ त्रिकोण क्षेत्रोंको पूर्ववत् खंडित करने पर पूर्वोक्त त्रिकोणोंसे आधी मोटाई, ई तथा लम्बाईके सोलह त्रिकोण क्षेत्र होते हैं । इनको निकाल कर ( शेष) आठ अायत चतुरस्रोंका क्षेत्रफल अभी कहे गये ( अायतोंके ) फलसे एक चौथाई मात्र आता है। इस प्रकार सोलह, बत्तीस, चौंसठ, श्रादि क्रमसे तब तक आयत चतुरस्र क्षेत्र बनते जायगे जब तक कि अविभाग प्रतिच्छेद ( प्रदेश ) अवस्था नहीं आय गी। तथा इसमें पूर्ववर्ती श्रायत चतुरस्रों के क्षेत्रफलसे उत्तरवर्ती (द्विगुणित) अायत चतुरस्रोंका फल एक चौथाई ही हो गा। इस प्रकारसे उत्पन्न निःशेष क्षेत्रोंके फलोंको जोड़नेकी प्रक्रिया कहते हैं। वह इस प्रकार है १ ‘अवसेस चत्तारि खेत्ताणि अद्ध ठरज्जुरसेहाणि छब्बीस्सुत्तर वेसदेहि एगरज्जु खडिय तत्थ एगठिंसद खडेहि सादिरेय चत्तारिरज्जु (४१६१)भुजाणिकण्णखेत्ते आलिहिय दोसु वि पासेसु मञ्झम्मि छिष्णेतु चत्तारि आयद चउरंस खेत्ताणि अठ्ठ त्रिकोण खेत्ताणि च होति ।' (पृ० १४-१५) २ 'एत्थ चदुह मायद चउरंस खेत्ताणं फलं पुब्बिल दो खेत्त फलस्स चउभागमेत्त होदि । चदुसु वि खेत्तेसु वाहल्लाविरोहेण एगढ़ कदेसु तिष्णि रज्जु वाहल्लं पुबिल्ल खेत्त विक्संभायामेहिं तो अद्धमेत्त विक्खभायामपमाण खेतुवलभादो। किमर्छ चदुण्हं पि मिलिदाणं तिष्णि रज्जु वाहल्लत ? पुन्बिल खेत्त वाहल्लादो संपहिय खेत्ताण मद्धमत्त वाहल्लं होदूण तदुस्सेहं पेक्खिदूण अद्धमेत्तुस्सेह देसंणादो।" (पृ०१५) ३ 'संपहि सेस अठ्ठ खेताणि पुव्वं व खंडिय तत्थ सोलस तिकोण खेत्ताणि अणंतरापीदखत्ताण मुस्सेहादो विक्खभादो वाहल्लादो च अद्धमेत्ताणि अवणिय अण्हमायद चउरंस खेत्ताणं फल मगंतराइक्कत चदुखेत्त फलस्स चउभाग मेत्त होदि ।' (पृ. १५) ४ एवं सोलस-वत्तीस-चउसठि आदि कमेण आयद चउरंस खेत्ताणि पुबिल्ल खेत्तफलादो चउभागमेत्त फलाणि होदूण गच्छति जाव अविभागपलिच्छेदं पत्तं ति ।” (पृ० १५-१६) ४९५
SR No.012085
Book TitleVarni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhushalchandra Gorawala
PublisherVarni Hirak Jayanti Mahotsav Samiti
Publication Year1950
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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