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________________ जय युग के अभिमान ! तुम्हारा अभिनन्दन हो (१) वीर-देशनाका उर में अनुराग लिये हो, सत्य अहिंसा का प्रतीक वह त्याग किये हो । हो धार्मिक अभिवृद्धि निरन्तर उत्सुक साधक पाप होम के हेतु ज्ञान की आग लिये हो ॥ जय अलभ्य वरदान ! तुम्हारा अभिनन्दन हो, जय युय के अभिमान ! तुम्हारा अभिनन्दन हो । (२) तुम निश्चय में मग्न; किन्तु व्यवहार लिये हो, तुम जागृति के नित्य नये त्योहार लिये हो । तुम बिखरे से लक्ष्य-हीन इन वीस लक्ष्य में -- जान लाने ऐक्यवेणु केतार लिये हो || जय समाज के प्राण ! तुम्हारा अभिनन्दन हो, अभिमान ! तुम्हारा अभिनन्दन हो । (३) जय युग आत्म शक्तिसे सत्त्वर पुनरुत्थान करोगे, नव विकास का यत्न अरे आह्वान करोगे । दर्शन ज्ञान चरित्र इन्हीं के बल पर तुम तो, मानव की लघुता को आज महान करोगे || जय समर्थ विद्वान ! तुम्हारा अभिनन्दन हो, जय युग के अभिमान ! तुम्हारा अभिनन्दन हो । (४) जय जिनके जयनाद ! तुम्हारा अभिनन्दन हो, जय सदगुरु की याद ! तुम्हारा अभिनन्दन हो । जय जीवित स्याद्वाद ! तुम्हारा अभिनन्दन हो, जय गणेश परसाद ! तुम्हारा अभिनन्दन हो || जय गौरव गुण खान ! तुम्हारा अभिनन्दन हो, जय युग के अभिमान ! तुम्हारा अभिनन्दन हो । राजेन्द्रकुमार 'कुमरेश' आयुर्वेदाचार्य उनतालीस
SR No.012085
Book TitleVarni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhushalchandra Gorawala
PublisherVarni Hirak Jayanti Mahotsav Samiti
Publication Year1950
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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