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________________ वर्णी-अभिनन्दन-ग्रन्थ ज्यामिति एवं क्षेत्रमिति भारतीयोंको समानान्तर चतुर्भुज, समलम्ब, चक्रीय, चतुर्भुज, त्रिभुज, वृत्त तथा त्रिज्यखण्ड के क्षेत्रफल निकालनेके गुरु ज्ञात थे । इसके अतिरिक्त समानान्तर षड्फलक समतल, श्राधारयुक्त शूची स्तम्भ, वेलन, तखा शंकुके श्रायतन निकालनेके गुरू भी उनसे छिपे न थे। किन्तु वैदिक ग्रन्थो में इस बातका कोई अभास भी नहीं मिलता कि ये गुरु किस प्रकार फलित हुए थे। किन्तु धवलामें छिन्न-शंकुका आयतन निकालनेकी सर्वाङ्ग प्रक्रिया तक मिलती है। यह वर्णन स्पष्ट बताता है कि ज्यामितिके अध्ययनकी भारतीय प्रथा ग्रीक प्रथासे सर्वथा भिन्न थी। उक्त दृष्टान्तमें किसी क्षेत्रफल या आयतनको सरलतर क्षेत्रफल अथवा पायतनमें, क्षेत्रफल या आयतनको विना बदले ही विकृत करनेका सिद्धान्त निहित है। यतः वर्तमानमें वैदिक तथा जैन ग्रन्थों में उपलब्ध क्षेत्रमितिके गुरुओंकी उपपत्तिका पुनर्निर्माण शक्य है । अतः यहां पर हम कतिपय उपपत्तियोंका पुनर्निर्माण करेंगे भी, किन्तु ऐसा करनेके पहिले धवला के मूल उद्धरण तथा उसके अनुवादको देख लेना अनिवार्य है लोकका आयतन निकालनेका प्रश्न है। जैन मान्यातानुसार लोक नीचे ऊपर रखे गये तीन छिन्न-शंकुत्रोंके आकारका है ( देखें आकृति१) । विविध परिमाण आकृतिमें दिखाये गये हैं। धवलामें लोक के आयतनकी गणना की गयी है। नीचे लिखे निष्कर्ष अधोलोक (आकृति २) के छिन्न-शंकु ( Frustum) का आयतन निकालने में सहायक हैं। आधारका व्यास = ७ (राजु) मुख (शिखर) का व्यास=१,, उत्षेध = ७ ,। धवला टीका निम्न प्रकार है'मुखमें (ऊपर) तिर्यक रूपसे गोल तथा आकाशके एक प्रदेश बाहुल्ययुक्त इस सूचीकी परिधि ३५७ होती है । इस (परिधि) के आधेको विष्कम्भ ( एक राजु ) के आधेसे गुणा करनेपर ४९२
SR No.012085
Book TitleVarni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhushalchandra Gorawala
PublisherVarni Hirak Jayanti Mahotsav Samiti
Publication Year1950
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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