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वर्णी-अभिनन्दन-ग्रन्थ श्री बी० दत्तका "जैन गणितज्ञ वर्ग" शीर्षक निबन्ध प्रकाशित हुआ है जिसमें विद्वान लेखकने गणित तथा गणित ग्रन्थों के विषयकी तालिकाएं दी हैं । फलतः जिज्ञासुओंके लिए यह निबन्ध पठनीय है । यह हमारा दुर्भाग्य है कि हम उपरि-उल्लिखित 'गणितसार संग्रह' के अतिरिक्त अन्य जैन ज्यौतिष अथवा गणित ग्रन्थोंका अब तक पता नहीं लगा सके हैं। ऐसे ग्रन्थ हैं या नहीं यह भी बाज नहीं कहा जा सकता, फलतः जैन गणित विषयक समस्त उल्लेखोंको हम उनके सिद्धान्त ग्रन्थोंसे ही संकलित करते हैं । इस प्रकार प्राप्त उद्धरण भी बहुत कम हैं। इनका भी अपेक्षाकृत विस्तृत वर्णन मुझे सबसे पहिले धवलाटीका में ही देखनेको मिला है।
____धवला टीका हमें निम्न सूचनाएं देती है-१--'स्थान मूल्य' का उपयोग, २-घातांकों ( Indices ) के नियम, ३-लधु गणकों ( Logarithms ) के सिद्धान्त, ४,-भिन्नोंके विशेष उपयोगके नियम तथा ५-ज्यामिति और क्षेत्रमितिमें उपयुक्त प्रकार ।
क्षेत्रफल और आयतनको सुरक्षित रखने वाले 'रूपान्तर' सिद्धान्तका भी जैनाचार्योंने उपयोग किया है। क्षेत्रमितिमें इसका उन्होंने पर्याप्त प्रयोग किया है। धवलामें पाई (ग)का ३५५/११३ मूल्य मिलता है। इसको पाईका 'चीनीमान' कहा जाता है किन्तु मेरा विश्वास है कि कतिपय लोगोंने इस मानक इनका चीनमें प्रचलन होनेसे पहिले भी जाना था तथा प्रयोग किया था। अंकगणित
'स्थानमान' सिद्धान्त-जैन सिद्धान्त तथा साहित्य में हम बड़ी संख्याअोंका प्रयोग पाते हैं। इन संख्याओंको शब्दोंमें व्यक्त किया गया है। धवला टीकामें आगत उद्धरण ऐसी संख्याओंको अंकों द्वारा व्यक्त करनेकी कठिनाईका उल्लेख करते हैं फलतः उन्हें व्यक्त करनेके कतिपय उपाय निम्नप्रकार हैं:
(क) ७९९९९९९८ को 'वह संख्या जिसके प्रारम्भमें ७, मध्यमें छह बार ६ तथा अन्तमें ८' कह कर व्यक्त किया है।'
(ख) ४६६६६६६४ को 'चौंसठ, छहसौ, छयासठ हजार, छयासठ लाख तथा चार करोड़ लिखा है ।
(ग) २२७९६४९८ को दो करोड़,सत्ताइस, निन्यानवे हजार चार तथा अंठानवे कहा है'। श्रीधवलाके तृतीय भाग पृ० ६८ पर
- सत्तादी अटुंता छरणव मज्झा य संजदा सव्वे।
तिग भजिदा विगुणिदा पमत्त रासो पमत्ता दु ॥ १, धवला, भा० ३, पृ०९८ पर जीवकाण्ड (गोम्मटसार )की ५१ वीं गाथा (पृ०६३३) उद्धत है। ' २, वही, पृ० ९९,गा० ५२ । ३, , १००,,५३।
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