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________________ भारतीय-ज्योतिषका पोषक जैन ज्योतिष प्रतिपदाको मघा नक्षत्र पर आता है। नक्षत्र लानेकी गणित प्रक्रिया इस प्रकार है-पर्वकी संख्याको १५ से गुणा कर गत तिथि संख्याको जोड़ कर जो हो उसमें दो घा कर शेषमें ८२ का भाग देनेसे जो शेष रहे उसमें २७ का भाग देनेपर जो शेष अवे उतनी ही संख्या वाला नक्षत्र होता है, परन्तु यह नक्षत्र-गणना कृत्तिकासे लेनी चाहिये। प्राचीन जैन ज्योतिषमें सूर्य संक्रान्तिके अनुसार द्वादश महीनोंकी नामावली भी निम्न प्रकार मिलती है प्रचलित नाम श्रावण भाद्रपद आश्विन कार्तिक मार्गशीर्ष पौष सूर्य संक्रान्तिके अनुसार जैन महिनोंके नाम अभिनन्दु सुप्रतिष्ठ विजया प्रीतिवर्द्धन श्रेयान् शिव যিছি माघ फाल्गुन हमवान् चैत्र वसन्त वैशाख कुसुमसंभव ज्येष्ठ निदाघ आषाढ़ वनविरोधी इस मास प्रक्रियाके मूलमें संक्रान्ति सम्बन्धी नक्षत्र रहता है । इस नक्षत्रके प्रभावसे ही अभिनन्दु आदि द्वादश महीनोंके नाम बताये गये हैं । जैनेतर भारतीय ज्योतिषमें भी एकाध जगह दो चार महीनोंके नाम आये हैं। वराहमिहिरने सत्याचार्य और यवनाचार्यका उल्लेख करते हुए संक्रान्ति संबंधी नक्षत्रके हिसाबसे मास गणनाका खण्डन किया है। लेकिन प्रारंभिक ज्योतिष सिद्धान्तोंके ऊपर विचार करनेसे यह स्पष्ट है कि यह मास प्रक्रिया बहुत प्राचीन है ऋक् ज्योतिषमें एक स्थानपर कार्तिकके लिए प्रीतिवर्द्धन और आश्विनके लिए विजया प्रयुक्त हुए हैं। इसी प्रकार जैन ज्योतिषमें सम्वत्सरकी प्रक्रिया भी और मौलिक व महत्त्वपूर्ण है । जैनाचार्योंने जितने विस्तारके साथ इस सिद्धान्तके ऊपर लिखा है उतना अन्य सिद्धान्तोंके सम्बन्धमें नहीं । प्राचीन १ "नक्षत्राणां परावर्त ....." इत्यादि । काललोकप्रकाश, पृ० ११ । ६० ४७३
SR No.012085
Book TitleVarni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhushalchandra Gorawala
PublisherVarni Hirak Jayanti Mahotsav Samiti
Publication Year1950
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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