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जैन पुराणोंके स्त्रीपात्र श्रीमती ब्र० पं० चन्दाबाई जैन, विदुषीरत्न
___ साहित्य मानवताको सजीव करता है । सविशेष पुराण; ये साहित्य कलाके ऐसे अवयव हैं जिनसे मानव अपनी विचार धाराको परिष्कृत कर सामाजिक, धार्मिक, राजनैतिक,और आर्थिक सदाचारका निर्माण करता है । वह पौराणिक पात्रोंके जीवनके साथ तादात्म्य सम्बन्ध स्थापित कर उनके समान बननेका प्रयत्न करता है । प्रत्येक नर-नारीके जीवन तत्त्वोंकी अभिव्यक्ति नैतिकता या सदाचारके आधार पर ही हो सकती है । सत्य, त्याग, परदुःख-कारता, दृढ़ता, सहिष्णुता, स्वार्थ-हीनता, संयम, इन्द्रियजय
आदि ऐसे गुण हैं जिनके सद्भावसे ही मानव जीवनकी नीव दृढ़ होती है। इन गुणोंके अभावमें मानव मानव न रहकर दानव कोटिमें चला जाता है। आत्मनिरीक्षण एक ऐसी प्रवृत्ति है जिससे व्यक्ति अपनी आन्तरिक दुर्बलताओं पर विजय प्राप्त कर क्षमा, मार्दव, सत्य, प्रभृति भावोंको उद्बुद्ध कर सकता है। यह आत्मनिरीक्षण प्रवृत्ति कुछ लोगोंमें सहज जागृत हो जाती है और कुछमें आगम ज्ञान द्वारा। पौराणिक पात्रों के आदर्श चरित्र व्यक्तिकी इस आत्म निरीक्षण प्रवृत्तिको बुद्ध-शुद्ध कर देते हैं, और वाचकके जीवन में सत्य और अहिंसाका भली-भांति संचार होने लगता है।
_ विश्वमें सदासे नर और नारी समान रूपसे अपने कार्य कलापोंके दायित्वको निभाते चले आ रहे हैं । इसी कारण हमारे पुरुष; पुराण-निर्माताओंको भी पुरुषपात्रोंके समान नारीपात्रोंका चरित्रगत उत्कर्ष दिखलाना ही पड़ा था। जहां नारीको 'नरक नसैनी' बतलाया है, वहीं लौकिक दृष्टि से मातृत्वमें उसके समस्त गुणोंका विकास दिखाकर उसे जननीत्वके उच्च शिखरपर आरूढ़ कर जगत्पूज्य बनाया है। तीर्थकर, चक्रवर्ती, नारायण, बलभद्र, प्रभृति महापुरुषोंको जन्म देनेवाली और लालन करने वाली नारी कदापि हीन नहीं कहीं जा सकती है। हां केवल वासना और विलासिताकी प्रतिमूर्ति नारी अवश्य उपेक्षणीय, निन्दनीय तथा घृणाकी वस्तु बतलायो गयी है । यह केवल नारीके लिए ही चरितार्थ नहीं है किन्तु नरके लिए भी हैं ! जिस पुरुषने विलास और वासनाके आवेशमें होश हव.सको भुलाकर अपना पतन किया है. पुराणोंमें उसके जीवनकी समालोचना स्पष्ट रूपमें की गयी है ।
पुराणकारोंने नारीके लौकिक शिव और सत्य रूपकी अभिव्यञ्जना बड़े सुन्दर ढंगसे की है।
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