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कन्नड़ भाषाको जैनोंकी देन
लक्षण महापुराणके लेखक चावुण्डराय ( ९६८ ई० ) तथा अजितपुराण एवं गदायुद्धके निर्माता रन्न ( ९६३ ई० ) इसी समयमें हुए हैं । अपनी काव्य कला, कोमल कल्पना, चारू चिन्ता, प्रस्फुटित प्रतिभा तथा प्रसाद गुणयुक्त शैलीके कारण तत्कालीन कन्नड़ चिन्तकोंपर इनकी प्रभुता छा गयी थी तथा पंप, पोन्न
और रन्नने असाधारण ख्याति पायी थी। यही कारण है कि बारहवीं शतीके प्रारम्भमें हुए नागचन्द्र कविने 'अभिनवपंप' उपाधि धारण की थी। इनकी शैली उत्तम चम्पू है । पोन्न तो वाणको बराबरी करते हैं। चरित्र चित्रण तथा भाव व्यञ्जनामें रन्न अति अर्वाचीन हैं । तीर्थकर पुराण शृंगार-शान्त रसका अलौकिक सम्मिश्रण हैं । यही अवस्था भावावलिकी है जिसके आधेसे अधिक भागमें शृंगार और शेषमें शान्त रस है । शेष रस कथा वस्तुका अनुगमन करते हुए इन्ही प्रधान रसोंका समर्थन करते हैं । दर्शन तो इसमें अोतप्रोत है । यही जैन पुराणोंकी विशेषता है । इसी कारण इनको संक्षिप्त करना संभव नहीं है।
अद्यतनीय दृष्टियोंसे इन ग्रन्थोंकी समालोचना करना उचित नहीं होगा क्योंकि उस समयकी दृष्टि भोग, आन्तरिक शान्ति तथा आत्यन्तिक सिद्धि थी। जिनका इन ग्रन्थोंने सर्वथा सुन्दर निर्वाह किया है। पम्पका कर्ण, पोन्नका दमितारि तथा रन्नका दुर्योधन सिद्ध करते हैं कि ये दुखान्त पात्र चित्रण में पारंगत थे। महाकवि थे इसीलिए सहस्र वर्ष बीत जानेपर भी उनके ग्रन्थ आज नये ही हैं । इसी कारण चालुक्य तथा राष्ट्रकूट राजाओंने उन्हें 'कवि चक्रवती' आदि उपाधियां भी देकर सम्मानित किया था। जिनसेनाचार्य तथा गुणभद्राचार्य के पूर्वोत्तर-पुराणोंसे कथा वस्तु लेकर चांवुडरायने त्रिषष्ठि-लक्षण महापुराणकी रचना की है। कहीं कहीं तो कविपरमेश्वरके पद्य भी इन्होंने उद्धृत किये हैं । ये कवि होनेके साथ साथ युद्ध तथा धर्मवीर भी थे। श्रवण-बेलगोलस्थ श्री १००८ बाहुबलि-मूर्ति इनकी अमर कीर्ति है । बड्डाराधने नामक गद्य ग्रन्थ इस युगकी सर्वोत्तम कलामय रचना है। कुछ लोग श्वोअथवा श्वि-कोट्याचार्यको इसका लेखक कहते हैं तो दूसरे अज्ञातकर्तृक बताते हैं। जो भी हो जैनधर्मके माहात्म्य द्योतक कथाओंका यह संग्रह अनुपम है। तथा अपने युगके कथा ग्रन्थ 'देवी-अराधना' धूर्ताख्यान, जातक कथा, आदिकी कोटिका ग्रन्थ है । फलतः इसके यशस्वी लेखकको भूल जाना कन्नडिगोंका दुर्भाग्य हो गा।
अब ग्यारहवीं शतीमें आते हैं तो हमें अभिनव पंप नागचन्द्र तथा श्रीमतीकान्तिके दर्शन होते हैं। 'भारती वर्णपूर, साहित्य-विद्याधर, साहित्य सर्वज्ञ आदि उपाधियां ही पंपकी महत्ताको प्रकट करती हैं । इन्होंने अपनी रामायण में विमलसूरिके पउमचरिऊका अनुसरण किया है । रावणके दुखान्त चरित्र चित्रणमें अद्भुत कुशलताका परिचय दिया है। इन्होंने विजयपुरमें मल्लिनाथ मन्दिर बनवा कर वहीं मल्लिनाथ पुराणकी रचना की थी। नागचन्द्रने स्वयमेव कान्तिदेवीकी कवित्व विषयक उत्कृष्टताका उल्लेख किया है । 'कान्तिहं पर समस्ये' ग्रन्थ उपलब्ध है अन्य कृति कोई अबतक प्राप्त नहीं हुई है। अन्य कवियोंकी तालिका
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