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________________ श्रद्धाञ्जलि वातावरण उत्पन्न हुए, उनको आपने अपने प्रभाव और न्यायसे ऐसा सुलझाया है कि वह सब उदाहरण की बातें बन गयीं हैं । इससे आपका प्रशस्त सुधारक स्वरूप सामने आ जाता है जिसकी आधुनिक समयमें अत्यन्त आवश्यकता है। . इसी प्रकार इस नश्वर शरीरको अायु पर्यन्त धर्म साधन के लिए दृढ़ और नीरोग रखनेके लिए भी जैन विद्वानोंको आपने आयुर्वेद शास्त्र पढ़नेके लिए उत्साहित किया और उनकी शिक्षा का प्रबन्ध किया है। किन्तु आप स्वयं बड़े भारी वैद्य हैं क्योंकि हम तो त्रिफला आदि ही बांटते रह गये, और आपने व्रत संयम ग्रहण करने का उपदेश देकर शारीरिक तथा आध्यात्मिक रोगों की उत्पत्तिकी साधन सामग्री ही दूर कर दी है। आप चिराय हों यही भावना है । कानपुर ] (हकीम) कन्हैयालाल जैन, राजवैद्य विद्यार्थी कृतज्ञके सिवा क्या कुछ और भी हो सकता है ? फिर उस महागुरूके प्रति जिसका वात्सल्य विद्यार्थी मात्रके लिए सदा खुला रहा है । इतना ही नहीं अप्रिय अनिष्टकारी छात्रोंपर उन्हें जो रोष आता था वह उनके मुख मण्डलका रक्तवर्ण करके विद्यार्थी हृदयको द्रुत कर देता था। जतारा निवासी होने के कारण मुझपर उनका भ्रातृस्नेह रहा क्योंकि इस ग्राम के पास सिमरामें उन्हें अपनी धर्ममाता मिली थीं । अतएव अधिक न लिखकर चरणोंमें विनयावनत प्रणाम । कानपुर] ___ (पं०) बंशीधर, न्या० ती० पूज्य वर्णीजीसे साक्षात् अध्ययन करनेके कारण मैं तो उनका चरण चञ्चरीक हूं। आपमें कषाय, मरुस्थल में जलरेखा वत् समा जाती है। उनके सान्निध्यमें आनेवालोंको अनायास ही शान्ति, सम्पत्ति, प्रतिष्ठा, आदि की प्राप्ति होती है । उनके 'दृष्टि निर्मल बनाओ, निकट आनेवालोंको डांटो मत, भाग्यपर विश्वास रखो, संसार में सुख चाहते हो तो बुद्ध से बनकर रहो' श्रादि वाक्य सदैव याद आते हैं । पारसनाथ ] (पं०) शिखरचन्द्र, शास्त्री, न्याय-काव्यतीर्थ जब जब पूज्य श्री १०५ वर्णीजीका ध्यान करता हूं तब तब वह शीतकाल याद आता है जिसमें उस बुढियाने कहा था "बड़ी भली आदमन हो बऊ ! कडाकेकी ठंड पर रई है और मौड़ाकों पतरीसी कतैया पैरा राखी है । अबई से साधु बनाउने है का ? सम्हारर्के राखो ‘जो धूरा भरो हीरा आय ।' वर्णीजीकी जीवन सरिताके किनारे चलिये; स्कूल गये पंडितजीने देखा डरपोक सीधा लड़का है कहा हुक्का भर लामो, देर लगी, बुलाया देखा खाली हाथ, क्योंरे गणेश ? "पंडितजी कौन अच्छी आदत आय, उन्तीस
SR No.012085
Book TitleVarni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhushalchandra Gorawala
PublisherVarni Hirak Jayanti Mahotsav Samiti
Publication Year1950
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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