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________________ स्वामी समन्तभद्रका समय और इतिहास नवीन मतका बीज बोते समय "समन्तभद्रकी कृतियोंपर सर्वप्रथम व्याख्या अकलंक ने की अतः वे अकलंक के नितान्त निकट पूर्ववर्ती होने ही चाहिये" युक्ति दी गयी थी। किन्तु इसी तर्कका सिद्धसेन दिवाकरपर प्रयोग कीजिये । दिवाकरजीके सर्वप्रथम व्याख्याकार सिद्धर्षि ( न्यायावतारके ) और अभयदेवसूरि ( सन्मतितर्कके ) हैं जिनका समय १०-११वीं शती ई० है, अतः दिवाकरजी भी १०-११वीं शतीके आस पासके विद्वान हो सकते हैं ऐसा मानना चाहिये। किन्तु डा. हर्मन जैकोबी तथा श्री वैद्य द्वारा कल्याणमन्दिरकी रचनाके अर्वाचीनत्व तथा सिद्धसेन दिवाकरकृत न होने में १४-१५वीं शतीके बादकी टीकाओंकी युक्ति दिये जानेपर उसका सदल-बल प्रतिवाद करते हुए कहा गया कि प्राचीन टीका उपलब्ध न होनेसे यह नहीं कहा जा सकता कि वह स्तोत्र भी प्राचीन नहीं है' ! सिद्धसेन दिवाकरकी कृति मानने के लिये प्रचलित द्वात्रिंशंकाओंको १०वीं या ११ वीं शतीसे पूर्वका कोई प्रमाण और सन्मतितर्कके लिए सर्वप्रथम प्रमाण भी आठवीं शतीसे पूर्वका उपलब्ध नहीं है । तथापि सिद्धसेन दिवाकरको पांचवीं या छठी शतीके बादका विद्वान् कदापि नहीं माननाांचाहते हैं । फलतः स्वामीको पूज्यपादका उत्तरवर्ती बताना स्वयमेव निस्सार हो जाता है। कुछ समयसे, प्राचीन व्यक्तियोंका समय निर्धारण करनेमें एक विशेष शैलीका प्रयोग बहुलता से होने लगा है, विशेषकर नैयायिकों द्वारा । इस शैलीमें विभिन्न व्यक्तियोंके नामसे प्रसिद्ध उपलब्ध कृतियोंका तुलनात्मक अन्तःपरीक्षण करके शब्द और विचार साम्यके आधारपर ज्ञात समय व्यक्ति के साथ विचारणीय व्यक्ति का योगपद्य अथवा समकालीनता स्थापित करके उनको पूर्वापर विद्वान घोषित कर दिया जाता है। प्रधान ऐतिहासिक साधनों, पुरातत्त्वादि शिलालेखीय आधार, समकालीन अथवा निकटवर्ती साहित्यगत उल्लेख, तत्कालीन ऐतिहासिक अभिलेख, घटना चक्र, परिस्थितियां तथा उत्तरकालीन लिखित एवं मौखिक अनुश्रुति, आदिके वैज्ञानिक विश्लेषण और समन्वयके पश्चात जो तथ्य उपलब्ध हों उनकी पुष्टि में इस नैयायिक शैलीका उपयोग भले ही किया जाय, किन्तु मात्र यही साधन उक्त सबका स्थान लेने या खंडन करनेमें सर्वथा अपर्याप्त एवं असमर्थ है। स्वामी समन्तभद्रके तथा उसी प्रकार कुन्दकुन्दादि अन्य आचायोंके समयके सम्बंधमें बाधाएं उठाकर विवक्षित समयकी खींचातानोके जो प्रयत्न किये जाते हैं उन सबका आधार प्रायः यही नैयायिक शैली है । स्वामी समन्तभद्रके समयकी पुष्ट सामग्री स्वामी समन्तभद्रके समय पर जो प्रमाण महत्वपूर्ण प्रकाश डालते हैं, वे निम्न प्रकार हैं१-ईस्वी सन्के प्रथम सहस्रीमें वैदिक, जैन तथा बौद्ध तार्किक दार्शनिक विद्वानोंने भारत भूमिका गौरव १ सन्मतितर्क भूमिका पृ० ५२ पर टिप्पण। २ , , पृ० ४२ । ३८३
SR No.012085
Book TitleVarni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhushalchandra Gorawala
PublisherVarni Hirak Jayanti Mahotsav Samiti
Publication Year1950
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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