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________________ वर्णी-अभिनन्दन-ग्रन्थ प्रकरण-साम्य-मदनपराजय और सम्यक्त्वकौमुदी में पायी जानेवाली उल्लिखित समानताओं के बावजूद भी एक ऐसी समानता पायी जाती है, जिसे हम 'प्रकरण-साम्य' कह सकते हैं, अर्थात् जिस प्रकार मदनपराजय में कथा-वस्तुको पल्लवित तथा परिवर्धित करनेके लिए और पात्रोक्तियोंको पुष्ट तथा समर्थ बनानेके लिए हठात् नये-नये प्रकरणों और प्रसङ्गों की योजना की गयी है, ठीक यही पद्धति सम्यक्त्व कौमुदी में भी प्रायः सर्वत्र विखरी हुई दिखलायी देती है । ऐसे कतिपय स्थल निम्न प्रकार हैं (क) 'मदन-पराजय' (पृ. २१-२२) का अर्थप्रकरण, जिसमें शिल्पकारने नौ पद्यों द्वारा अर्थकी उपयोगिता बतलायी है। उसका वैसा ही चित्रण सम्यक्त्वकौमुदी (पृ. ९०-६१ ) में भी श्राठवीं विद्युल्लताकी कथामें समुद्रदत्तकी चिन्ता द्वारा ग्रथित किया गया है। (ख) मदन-पराजय (पृ. १४-१५) का स्त्री-निन्दा प्रकरण जिसमें दस पद्यों द्वारा जो खोलकर स्त्री-निन्दाका काण्ड उपस्थित किया गया है । सम्यक्त्वकौमुदी कारने भी अपनी रचनामें इस काण्डको दो बार उपस्थित किया है । एक बार पहली कथामें उस समय, जब सुभद्रको अपनी वृद्धा माताकी कुशील प्रवृत्तिका पता चला है ( पृ. २३-२४ ) और दूसरे तब; जब कि कोई धूर्त अशोकके सामने कमलश्री के काण्ड (पृ. ९४-९५ ) को उपस्थित करता है । (ग) मदनपराजय (पृ. ११-२) का वह प्रकरण, जिसमें राजगृहमें सुभद्राचार्य के संघ सहित पानेसे नगरका उद्यान एकदम हरा-भरा हो जाता है । एक साथ छहों ऋतुओंके फल-फूलोंसे समृद्ध हो उठता है । उसे भी सम्यक्त्वकौमुदी के कर्ताने विष्णुकी कथाके प्रसङ्गसे समाधिगुप्त मुनिराजके आने पर कौशाम्बीके उद्यान वर्णनमें सजीव चित्रित किया है । इतना ही नहीं, इस अवसर पर मदनपराजयकारने जिन पद्योंको उल्लेख किया है, सम्यक्त्वकौमुदी कारने यत्किञ्चित् परिवर्तनके साथ ही उन्हीं पद्यों को अपनी रचनाका अङ्ग बना लिया है। इस प्रकारके साम्य पग पगपर सुलभ हैं। भाषा, शैली, भाव और पद्य-साम्यके भी अन्य स्थल दोनों रचनाओं में पाये जाते हैं । ये समस्त प्रमाण इसी बातको पुष्ट करते हैं कि सम्यक्त्वकौमुदी और मदनपराजय के रचयिता एक ही हैं और वह हैं-नागदेव । क्योंकि मदनपराजय की प्रस्तावनामें इस बातका स्पष्ट उल्लेख है कि इसकी रचना नागदेव ने की है। नागदेवका परिचय नागदेवने 'मदन-पराजय' की प्रस्तावनामें स्वयं ही अपना और अपनी वंश-परंपराका परिचय "पृथ्वी पर पवित्र रघुकुल रूपी कमलको विकसित करनेके लिए सूर्य के समान चङ्गदेव हुए । चङ्गदेव. कल्प वृक्षके समान समस्त याचकोंके मनोरथ पूर्ण करते थे । इनका पुत्र हरिदेव हुा । हरिदेव दुष्ट कवि रूपी हाथियोंके लिए सिंहके समान भयंकर था । इनका पुत्र नागदेव हुआ, जिसकी भूलोकमें महान् वैद्यराजके ३७८
SR No.012085
Book TitleVarni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhushalchandra Gorawala
PublisherVarni Hirak Jayanti Mahotsav Samiti
Publication Year1950
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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