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________________ जैन साहित्य में राजनीति पक्षियोंका मार्ग जाना जा सकता है किन्तु हाथके वलेको लुप्त करनेवाले मन्त्रियोंकी प्रवृत्ति नहीं जानी जा सकती । जिस प्रकार वैद्य लोग धनाढ्य पुरुषोंके रोग बढ़ाने के लिए सदा तत्पर रहते हैं उसी प्रकार मन्त्री भी राजानोंकी आपत्तियां बढ़ाने में सदा प्रयत्नशील रहते हैं । ग्रन्थकारने जहां मन्त्रियोंके प्रति राजाको जागरूक रहनेका उपदेश दिया है वहां मन्त्रियोंकी उपयोगिताका भी सुन्दर प्रतिपादन किया है । यतः मन्त्रियों के विना केवल राजाके द्वारा ही राज्यका संचालन नहीं हो सकता अतः राजाको अनेक मन्त्री रखना चाहिये और सावधानीसे उनका भरण पोषण करना चाहिये ।" राज्यकी उन्नतिका द्वितीय साधन मन्त्री गोपनीयता है, इसके विना योग-क्षेम दोनों ही नहीं रहते। वही राजा नीतिज्ञ है जो अपने मन्त्रका अन्य राजाओं को पता नहीं लगने देता तथा चतुर चरोंके द्वारा उनका मन्त्र जानता रहता है । मन्त्र रक्षा के लिए राजाओं को श्रयुक्त व्यक्तिको मन्त्रशालामें नहीं आने देना चाहिये महाराज यशोधरको समझाते हुए कहते हैं— 'हे महीपाल ! आप मन्त्रशालाका पूर्ण शोधन करें, रतिकालमें प्रयुक्त पुरुषकके सद्भावके समान मन्त्रशाला में अयोग्य एवं लघु पुरुषका सद्भाव वाञ्छनीय नहीं है । विष और शस्त्र के द्वारा एक मारा जाता है । परन्तु मन्त्रका एक विस्फोट ही सबन्धु राष्ट्र और राजा सभीको नष्ट कर देता है ।' कितने ही राजा दैवको न मानकर केवल पुरुषार्थवादी बन जाते हैं ऐसे लोगों के लिए श्राचार्य सचेत करते हैं कि 'राजाको चाहिये कि वह क्रमशः दैव ग्रहोंकी अनुकूलता, धनादि वैभव और धार्मिक मर्यादाका विचार करके ही युद्धादिमें प्रवृत्त हो । जो पुरुष धर्मके प्रसाद से लक्ष्मी प्राप्त करके श्रागे धर्म धारण करनेमें आलस करता है इस संसार में उससे बढ़कर कृतघ्न कौन होगा ? श्रथवा श्रागामी जन्म में उससे बढ़कर दरिद्र कौन होगा ? हाथीका शिकार करके केवल पाप कमानेवाले सिंहके समान धर्मकी उपेक्षा करके धन संचय करनेवाला राजा है, क्योंकि शृगालादिके समान धनादि परिजन खा पी जाते हैं । केवल दैवके भक्त बन कर पुरुषार्थ हीन राजाओं को भी सावधान करते हैं कि 'जो पौरुपको छोड़कर भाग्यके भरोसे बैठे रहते हैं उनके मस्तकपर कौए उसी तरह बैठते हैं जिस प्रकार निस्तेज राजाके विरुद्ध क्या अपने क्या दूसरे, – सभी जाल रचने लगते हैं । भला, ठण्ढी राख पर कौन पैर नहीं रखता ?' मन्त्र और मन्त्रीकी कितनी सुन्दर परिभाषा देते है ?' जिसमें देश, काल, व्ययका उपाय, सहायक और फलका निश्चय किया जाता है वही मन्त्र है । शेष सब मुहकी खाज मिटाना है । जिसका मन्त्र कार्यान्वित हो और फल स्वामीके अनुकूल ही वहो मन्त्री है । अन्य सब गाल बजाने वाले हैं।' मंत्री कहां का हो ? इसका उत्तर भी बड़ा उदार दिया है 'मन्त्री चाहे स्वदेशका हो, चाहे पर देशका राजा को अपने प्रारब्ध कार्योंके सफल निर्वाह पर ही दृष्टि रखनी चाहिये ।' क्योंकि शरीर में मकान में बने मिट्टीके सिंहों पर १ यशस्तिलक चम्पू आ० ३ श्लो० २३-२६ । २. यशस्तिलक चम्पू आ० ३ श्लो० २७-५६ ३६५
SR No.012085
Book TitleVarni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhushalchandra Gorawala
PublisherVarni Hirak Jayanti Mahotsav Samiti
Publication Year1950
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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