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________________ वर्णी-अभिनन्दन-ग्रन्थ प्रतिक्रिया नहीं थी । इस विषम समयमें स्वामी दयानन्द आगे आये । वह गुजरातमें रहते थे और स्थानकवासी जैन साधुअोंका प्रभाव उन पर पड़ा था । उन्होंने सभी सम्प्रदायों पर बुरी तरह अाक्रमण किया। सब लोग तिलमिला उठे, सबको अपना घर सम्हालनेका होश आया । जैनियोंने यद्यपि दयानंदजीसे सफल मोर्चा लिया; परन्तु उतना पर्याप्त नहीं था । जैनियों में धर्मज्ञान फैलानेकी आवश्यकता प्रतीत हुई । जैनोंमें दिग्गज विद्वान् भी तैयार करना आवश्यक प्रतीत हुआ । फलतः मथुराके वार्षिक मेलापर श्री “जैनधर्म संरक्षिणी महासभा की स्थापना दिगम्बर जैनियोंने की । सब ही दिगम्बर जैन उसके सदस्य हो सकते थे । "जैनसंघ' की पुनरावृत्ति करना ही मानो उसके संस्थापकोंका ध्येय था । उपजातियोंको भुलाकर सब ही जैनी उसमें सम्मिलित हुए और उन्होंने भ्रातृभावका अनुभव किया । उस समय जैनोंमें इतनी कट्टरता थी कि सब जैनी खुले आम सबके यहां 'रोटी' भी नहीं खा सकते थे। श्रावकाचार दोनों पालते थे; परंतु उप जातिका अभिमान उसमें वाधक था । महासभामें सम्मिलित होनेसे जैनियों की यह कट्टरता मिट गयी सब ही जैनी एक दूसरे के सम्पर्क में आये और वात्सल्य भावको प्राप्त हुए । महासभाने "जैन महाविद्यालय" की भो स्थापना की, जिसका उद्देश्य उच्चकोटिके संस्कृतज्ञ विद्वान् उत्पन्न करना था । समाज सुधारके लिए महासभाने बाल वृद्ध-विवाह, वेश्यानृत्य, बखेर, आतिशबाजी, आदि कुरीतियोंके विरुद्ध आवाज उठायी थी। कुछ अंग्रेजी पढ़े लिखे लोगोंके हृदयोंमें संगठनके भावका उदय अवश्य हुश्रा और उन्होंने "जैन यंग मेनस ऐसोसियेशन" को जन्म दिया। वही "श्राल इंडिया जैन एसोसियेशन" ( “भारत जैन महामंडल" ) के रूपमें परिवर्तित हो गया है; किन्तु वह भी जैनसंघको पुनः संगठित बनानेमें असफल रहा। इसके बाद दो दल हो गये। एक दल स्थितिपालनको ही पर्याप्त समझता था और दूसरा निरन्तर सुधार करना चाहता था। महासभाके महाविद्यालयको कोलिज बनानेपर संघर्ष प्रारम्भ हुश्रा । उपरान्त वह संघर्ष धर्म ग्रन्थ छपाने, कोलिज-स्कूल खोलने, दस्साअोंको पूजा करने देने, अादि बातोंको लेकर बढ़ता ही गया। समाजमें जागृतिकी लहर दौड़ गयी विद्यालय और पाठशालाएं खोली गयीं । श्राविकाश्रम भी खोले गये। इस कालमें जैन शिक्षाको विशेष प्रोत्साहन पूज्य पं० स्व० गोपालदासजी वरैया द्वारा मिला। उन्होंने दस्साओंको पूजा करने देनेका पक्ष लिया था । खतौलीके मुकद्दमे में दस्साओंकी तरफसे गवाही भी दी । (१) अजैनोंको जैनी बनाने और उनसे रोटी बेटी व्यवहार करने, (२) चारित्रभ्रष्टोंकी शुद्धि करने, (३) दस्साओंको दर्शन पूजन करने देने, (४) अन्तरजातीय विवाह करने और (५) पुरुष-स्त्रीको समान रूपमें धर्म शिक्षा देनेपर वरैयाजीने जोर दिया था। इन उपायों द्वारा ही पुनः एक अखंड जैन-संघका जन्म संभव था। दिल्लीके पूजा-महोत्सवके 1. Modern Religious Movement in India ( Calcutta ) P 104. ३०८
SR No.012085
Book TitleVarni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhushalchandra Gorawala
PublisherVarni Hirak Jayanti Mahotsav Samiti
Publication Year1950
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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