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कारकलका भैररस राजवंश कि सभी धर्मोंको एक-दृष्टिसे देखना राजाका धर्म है। इसीलिए जैनमंदिर वैदिकोंको दे दिया: मेरे अपराधोंको क्षमा करें । साथ ही साथ भट्टारकजीके समक्ष राजाने यह प्रतिज्ञा की कि एकही साल के अंदर मैं दूसरा इससे भी अधिक प्रशस्त जिनमंदिर तयार करवा दूंगा, जिससे मुझे अभ्युदय एवं निश्रेयसकी प्राप्ति हो । इस प्रतिज्ञासे बद्ध होकर भैरवरायने एक सालके भीतर इस 'त्रिभुवन तिलक' जिनचैत्यालयका निर्माण कराया था । यह मंदिर जैनमठके सामने उत्तर दिशामें है।
उपर्युक्त शासकोंके अतिरिक्त अभिनव पाण्ड्यदेव', हिरिय भैरवदेव' आदि राजाओंने भी जैनधर्मकी अच्छी प्रभावना की है । शासक ही नहीं, इस वंशमें कई वीर शासिकाएं भी हुई हैं ।
भैररसोंकी सभामें विद्वानोंका भी अच्छा अादर था। इसका मुख्य कारण यह है कि इस वंशके कई शासक स्वयं भी अच्छे कवि थे भव्यानन्द-शास्त्र' के रचयिता पाण्ड्य क्षमापति, क्रियानिघण्ट' के प्रणेता वीरपाण्ड्य, आदि इस बात के साक्षी हैं । भव्यानन्द-शास्त्र छोटासा सुभाषित ग्रंथ है ।
उस समयके संस्कृत कवियोंमें ललितकीर्ति, नागचंद्र, देवचन्द्र, कल्याणकीर्ति, श्रादि तथा कन्नड कवियोंमें रत्नाकर, चन्द्रम, श्रादिके नाम विशेष उल्लेखनीय हैं। इन कवियोंमें नागचन्द्रने 'विषापहारस्तोत्रटीका', कल्याणकीर्तिने 'जिनयज्ञफलोदय', [सं०]3 'ज्ञानचन्द्राभ्युदय', 'कामनकथे', 'अनुप्रेक्षे', 'यशोधरचरिते,' ‘फणिकुमारचरिते', 'जिनस्तुति', 'तत्त्वभेदाष्टक', सिद्धराशि' और 'चिन्मयचिन्तामणि' [क०] रत्नाकरने 'भरतेश्वरवैभव' और 'शतकत्रय' [रत्नाकर शतक, अपराजितेश्वर शतक और त्रिलोक शतक]४ तथा चन्द्रमने 'गोम्मटेश्वरचरिते५' 'जैनाचार', आदि की रचना की थी।
कारकलके शेष जैन स्मारकोंका संक्षिप्त परिचय निम्न प्रकार है
मठकी पूर्वदिशामें थोड़ी दूर पर एक पार्श्वनाथ बसदि है, जो 'बोम्मराय-बसदि' नामसे विश्रुत है, बाहुबलिपर्वत पर चढ़ते हुए बीचमें एक छोटा मंदिर है। इसका भी नाम 'पार्श्वनाथ-बसदि' है। पर्वत पर बाहुबली स्वामीके सामने दाहिनी और बायीं तरफ शीतलनाथ एवं पार्श्वनाथ तीर्थंकरोंके दो मंदिर हैं। हिरियंगड़ि जाते समय मार्गमें क्रमशः श्रमण या चन्द्रनाथ बसदि, आनेकेरे बसदि और अरमने बसदि ये तीन मन्दिर मिलते हैं । अानकेरे बसदिमें चन्द्रनाथ, शान्तिनाथ और वर्धमान तीर्थंकरोंकी प्रतिमाएं तथा अरमने बसदिमें आदिनाथ तीर्थंकरकी प्रतिमा विराजमान है। हिरियंगड़िमें वाम पार्श्वकी दक्षिण दिशामें
१ ई० सन् १४५७ में कारकलके हिरियंगडिस्थ नेमीश्वर बसदिको दत्त दानपत्र । २ ई० सन् १४६२ में मूडबिद्रीके होसबसदिको दत्त दानपत्र । ३ विशेषके लिए दृष्टव्य 'प्रशस्ति-संग्रह। ४ रत्नाकरके सब ग्रन्थोंका हिन्दी अनुवाद सोलापुरसे प्रकाशित हो चुका है। ५ 'जैन-सिद्धान्त-भास्कर' भाग ५, किरण २ देखें ।
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