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________________ वर्णी- अभिनन्दन ग्रन्थ अनेक व्यक्तियों में से एक हो सकते हैं । उस समय बुद्धिको अत्यन्त तीक्ष्णता अधिक सुलभ थी । भागवत पञ्चम स्कन्ध, अध्याय २-६ में जो ऋषभदेवका कथन श्राया है वह इस प्रकार है मनु स्वयंभू प्रियव्रत. अग्नीध्र नाभिमरुदेवी T ऋषभदेव भागवत में कहा है कि ऋषभदेव दिगम्बर थे और जैनधर्मके चलाने वाले थे । भागवत अध्याय ६ श्लोक १-११ में ग्रन्थकर्त्ता ने 'कोंका', 'वेंका' और 'कुटक' के आर्हत् राजा के विषय में लिखा है कि, यह राजा अपनी प्रजासे ऋषभदेवका जीवनचरित्र सुनेगा और कलियुग में एक धर्म चलावेगा • जिससे उसके अनुयायी ब्राह्मणोंसे घृणा करेंगे और नरकको जावें गे । ईस्वी सनकी पहिली शती में होनेवाले - हुविष्क और कनिष्क के समयके जो शिलालेख मथुरा में मिले हैं उनमें भी ऋषभदेव प्रथम तीर्थंकर का वर्णन श्राया है । वहीं पर कुछ ॠषभदेवकी मूर्तियां भी मिली हैं जिन्हें जैनी पूजते हैं । इन शिलालेखोंसे स्पष्ट विदित होता है कि, ईस्वी सनकी पहिली शती में ऋषभदेव प्रथम तीर्थंकर रूप में माने जाते थे । यदि महावीर या पार्श्वनाथ ही जैन धर्मके चलानेवाले होते, तो उनकी मूर्ति भी 'जैन धर्म के प्रवर्तक, इस उल्लेख सहित स्थापितकी जाती ? महावीरका निर्वाण ईस्वी सन से ५२७ वर्ष पहिले और पार्श्वनाथ का निर्वाण इससे २५० वर्ष पहिले अर्थात् ईस्वी सन से ७७७ वर्ष पूर्व में हुआ है किन्तु उस समय से कुछ ही शतियोंके पश्चात् उत्कीर्ण शिलालेखोंसे यह बात प्रगट होती है कि इस कालमें ऋषभदेव जैनधर्म के श्रादि प्रवर्तक ( प्रचारक ) हुए हैं। इस सबके प्रकाशमें यह कहना सर्वथा भ्रान्त है कि, केवल वैदिक धर्म ही प्राचीन भारत में फैला हुआ था । कदाचित् ऐसा होना संभव है कि उस समय वैदिक धर्म और इतर धर्म प्रायः समान स्वतंत्रता के साथ प्रसारित हो रहे हों ! प्राचीन भारत का अधिकांश सैद्धान्तिक और धार्मिक साहित्य लुप्त एवं विनष्ट हो गया है। जो ' बार्हस्पत्यसूत्र एक समय मिलते थे, अब उनका भी पता नहीं है । इस प्रकार दूसरे बहुत से सिद्धान्त सूत्र अब नहीं मिलते। इस कारण से उनके वर्ण्य विषयों से हम अनभिज्ञ हैं । केवल वैदिक साहित्य ही संयोगवश नष्ट होते होते बच गया है। लगभग अशोक के समय से जैन और बौद्ध साहित्य का भी लिपिबद्ध 1 १ – सैकरेड बुक्स ओफ ईष्ट भा. ४५ । २४०
SR No.012085
Book TitleVarni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhushalchandra Gorawala
PublisherVarni Hirak Jayanti Mahotsav Samiti
Publication Year1950
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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