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________________ महावीर स्वामीकी पूर्व परम्परा श्री प्रा० त्र्यम्बक गुरुनाथ काले, एम० ए० बुद्ध और पाश्वनाथ देवसेनाचार्यकृत दर्शनसारमें,' जो कि संवत् ९९० में उज्जैनमें लिखा गया है, यह लिखा है कि पार्श्वनाथ स्वामीके तीर्थ (भ० पार्श्वनाथके कैवल्यसे भ० महावीरकी कैवल्य प्राप्ति तकका काल) में एक बुद्धि कीर्ति नामका साधू था, जो शास्त्रोंका ज्ञाता और पिहिताश्रवका शिष्य था तथा पलाशनगरमें सरयू नदीके तटपर तपश्चर्या कर रहा था। उसने सोचा कि, मरी हुई मछलीका मांस खानेमें कोई हानि नहीं है क्यों कि वह निर्जीव है। फिर तप करना छोड़कर और रक्तवस्त्र पहिनकर वह बौद्ध धर्मका उपदेश देने लगा । इस प्रकार जैनमतानुसार बुद्ध पहले जैनमुनि था, जिसने विपरीत विचार करके मांस भक्षण करनेका उपदेश दिया और लाल वस्त्र धारण कर अपना धर्म चलाया । इतना ही नहीं, कहा जाता है कि जैन बौद्धोंके समकालीन थे, किन्तु ये उन नव दीक्षित बौद्धोंसे भी पहले के हैं। इस कारण जैनधर्म की प्राचीनताका अनुसन्धान जैन, बौद्ध और ब्राह्मण ग्रन्थोंके आधार पर करना चाहिये। जैनशास्त्रानुसार बुद्ध महावीरके शिष्य नहीं थे। किन्तु जैनी कहते हैं कि वह पिहिताश्रवका शिष्य या जैसा कि ऊपर कहा जा चुका है। कोलवक, स्टीवेनसन, मेजर-डेलामेन, डाक्टर हैमिल्टन, इत्यादिने गौतमबद्धको भ० महावीरके प्रशिष्य गौतम इन्द्रभूतिका स्थानीय समझानेकी भूल की है। यह (गौतम इन्द्रभूति ) महावीरके मुख्य गणधर भी थे । इस प्रकार जब कि गौतम गणधर महावीरके शिष्य थे तब कहा जाने लगा कि, गौतमबुद्ध महावीरके शिष्य थे। परन्तु जैनीलोग इस भ्रान्तिसे बिलकुल मुक्त हैं । यह बात ऊपर बतला दी गयी है कि, बुद्धिकीर्ति पिहिताश्रवका शिष्य था जो कि पार्श्वनाथ तीर्थकरके तीर्थकालमें हुए हैं। १. बाबू बनारसीदास द्वारा संपादित "जैन इतिहास माला प्र. १ पृ. १६ । २. "सिरि पासणाह तत्थे सरऊतीरे पलास कायरत्थे। पिहियासवस्स सिस्सो महासुओ बुड्ढि कित्ति मुणी। ६ । तिमि पूरणासणेणय अगणिय पावज्ज जाओ परिभट्टो। रतंवर धरित्ता पविठियं तेन एयंतं । ७।" २३७
SR No.012085
Book TitleVarni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhushalchandra Gorawala
PublisherVarni Hirak Jayanti Mahotsav Samiti
Publication Year1950
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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