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पुरातत्त्वकी शोध जैनोंका कर्तव्य श्री डा० वेन्सेन्ट ए० स्मिथ, एम्० ए० पुरातत्त्व सम्बन्धी खोजकी आवश्यकता
__ जो विद्यार्थी भारतवर्ष संबंधी किसी विषयका अध्ययन करते हैं वे सब इस बातको न्यूनाधिक रूपमें भली भांति जानते हैं कि पुरातत्त्वकी खोज द्वारा पिछले ७०-८० वर्ष में ज्ञानकी कितनी वृद्धि हुई है। पुरातत्त्वसंबंधी खोजके अनुसार मौखिक और लिखित कथाअोंके प्रमाणकी मर्यादा निश्चित की गयी है
और इन्हीं अन्वेषणोंकी सहायतासे मैं प्राचीन भारतका कथामय इतिहास लिखनेमें समर्थ हुअा हूं । बड़ी मेहनतके साथ लगातार जमीन खोदनेसे जो सिक्के, शिलालेल, भवन, धर्म-पुस्तकें, चित्र और बहुत तरहकी स्फुट अवशिष्ट चीजें मिली हैं उनकी सहायतासे हमने प्राचीन ग्रंथों में लिखे हुए भारतीय इतिहासके ढांचेकी पूर्ति की है, अपने ज्ञानको जो पहले अस्पष्ट था शुद्ध बनाया है और कालक्रमकी मजबूत पद्धतिकी नींव डाली है।
जैनोंके अधिकार में बड़े बड़े पुस्तकालय (भंडार ) हैं जिनकी रक्षा करनेमें वे बड़ा परिश्रम करते हैं । इन पुस्तकालयोंमें बहुमूल्य साहित्य भरा पड़ा है जिनकी खोज अभी बहुत कम हुई है । जैन ग्रंथ ख़ास तौर पर ऐतिहासिक और अर्ध-ऐतिहासिक समाग्रीसे परिपूर्ण हैं । परन्तु साहित्य संबंधी कथाएं बहुधा त्रुटिपूर्ण हैं । इसलिए सत्यके निर्णयके लिए पुरातत्त्व संबंधी खोजकी जरूरत है। धनाढ्य जैनोंका कर्तव्य
दूसरे समाजोंको देखते हुए जैनसमाजमें धनाढ्य मनुष्योंकी संख्या बहुत बड़ी चढ़ी है और ये लोग किसी तरहके सार्वजनिक काममें, जो उनके चित्तका आकर्षण करता हो, सुभीते के साथ रुपया खर्च कर सकते हैं । मेरा भाषा संबंधी ज्ञान इतना काफी नहीं है कि मैं साहित्य ग्रन्थोंकी परीक्षा कर सकं अथवा उनका सम्पादन कर सकं । अतएव मैं एक और विषयके संबंधमें, जिसका मैं जानकार हूं, कुछ कहने का साहस करता हूं और मैं कुछ ऐसी सम्मतियां देता हूं, जिनके अनुसार चलनेसे बहुतसी बहुमूल्य बातें हाथ लग सकें गी । मेरी इच्छा है कि जैनसमाजके लोग और विशेष कर धनाढ्य लोग जो रुपया खर्च कर सकते हैं पुरातत्त्वसंबंधी खोजकी ओर ध्यान दें और इस काममें अपने धर्म और समाजके इतिहासकी अोर विशेष लक्ष्य रखते हुए धन खर्च करें।
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