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________________ वर्णो-अभिनन्दन-ग्रन्थ है, अपने १२००० शिष्योंके साथ दक्षिणकी ओर प्रयाण किया । मार्गमें श्रुतकेवलीको ऐसा जान पड़ा कि उनका अन्त समय निकट है और इसलिए उन्होंने कटवप्र नामक देशके पहाड़ पर विश्राम करनेकी अाज्ञा दी । वह देश जन, धन, सुवर्ण, अन्न, गाय, भैंस, बकरी, श्रादिसे सम्पन्न था। तब उन्होंने विशाखमनिको उपदेश देकर अपने शिष्योंको उसे सौंप दिया और उन्हें चोल और पाण्ड्य देशोंमें उसके अधीन भेजा। राजावलिकथेमें लिखा है कि विशाखमुनि तामिल-प्रदेशोंमें गये, वहां पर जैनचैत्यालयोंमें उपासना की और वहांके निवासी जैनियोंको उपदेश दिया । इसका तात्पर्य यह है कि भद्रबाहुके मरण (अर्थात् २९७ ई० पू० ) के पूर्व भी जैनी सुदूर दक्षिणमें विद्यमान थे । यद्यपि इस बातका उल्लेख राजावलिकथेके अतिरिक्त और कहीं नहीं मिलता और न कोई अन्य प्रमाण ही इसके निर्णय करनेके लिए उपलब्ध होता है, परन्तु जब हम इस बात पर विचार करते हैं कि प्रत्येक धार्मिक सम्प्रदायमें विशेषतः उनके जन्मकालमें, प्रचारका भाव बहुत प्रबल होता है, तो शायद यह अनुमान अनुचित न होगा कि जैनधर्म के पूर्वतर प्रचारक पार्श्वनाथके संघ दक्षिणकी अोर अवश्य गये हों गे । इसके अतिरिक्त जैनियोंके हृदयोंमें ऐसे एकान्त स्थानोंमें वास करनेका भाव सर्वदासे चला आया है, जहां वे संसारके झंझटोंसे दूर प्रकृतिकी गोदमें, परमानन्दकी प्राप्ति कर सकें । अतएव ऐसे स्थानोंकी खोजमें जैनी लोग अवश्य दक्षिणकी ओर निकल गये होंगे। मदरास प्रान्तमें जो अभी जैन मन्दिरों, गुफाओं, और वस्तियोंके भग्नावशेष और धुस्स पाये जाते हैं वही उनके स्थान रहे हों गे । यह कहा जाता है कि किसी देशका साहित्य उसके निवासियोंके जीवन और व्यवहारोंका चित्र है । इसी सिद्धान्तके अनुसार तामिल-साहित्यकी ग्रन्थावलीसे हमें इस बातका पता लगता है कि जैनियोंने दक्षिण भारतकी सामाजिक एवं धार्मिक संस्थाओंपर कितना प्रभाव डाला है। साहित्यिक प्रमाण-- समस्त तामिल-साहित्यको हम तीन युगोंमें विभक्त कर सकते हैं१ संघ-काल । २ शैव नयनार और वैष्णव अलवार काल । ३ अर्वाचीन काल । इन तीन युगोंमें रचित ग्रन्थोंसे तामिल-देशमें जैनियोंके जीवन और कार्यका अच्छा पता लगता है ! संघ-काल-- तामिल लेखकोंके अनुसार तीन संघ हुए हैं । प्रथम संघ, मध्यम संघऔर अन्तिम संघ । वर्तमान ऐतिहासिक अनुसन्धानसे यह ज्ञात हो गया है कि किन किन समयोंके अन्तर्गत ये तीनों संघ हुए । अन्तिम संघके ४६ कवियों में से 'वक्किरारने संघोंका वर्णन किया है। उसके अनुसार प्रसिद्ध वैयाकरण थोलकपियर प्रथम और द्वितीय संघोंका सदस्य था। अान्तरिक और भाषासम्बन्धी प्रमाणोंके आधारपर अनुमान किया
SR No.012085
Book TitleVarni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhushalchandra Gorawala
PublisherVarni Hirak Jayanti Mahotsav Samiti
Publication Year1950
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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