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________________ वर्णी- अभिनन्दन ग्रन्थ समस्या- प्रश्न यह है कि मल्लोंकी राजधानी पावा कहां पर स्थित थी। यह निश्चित है कि बौद्ध और जैन साहित्य में जिन गणतंत्रोंका वर्णन मिलता है उनमें से पावाके मल्लोंका भी एक गणतंत्र था । मल्लों की दो मुख्य शाखाएं थीं - - ( १ ) कुशीनगर के मल्ल और ( २ ) पावाके मल्ल । मल्लोंकी नव छोटी छोटी शाखाओं का भी वर्णन मिलता है जिनको मल्लकि ( लघुवाचक ) कहते थे । इनके सभी वर्णनों से यही निष्कर्ष निकलता है कि मल्लोंकी सभी शाखाएं निकटस्थ, पड़ोसी और एक संघ में संघटित थीं । अतः मल्लोंकी दूसरी प्रमुख शाखाकी राजधानी पावा प्रथम प्रमुख शाखाकी राजधानी कुशीनगरसे दूर न होकर पास होनी चाहिये । अब यह निर्विवाद रूपसे सिद्ध हो गया है कि कुशीनगर देवरिया जिलान्तर्गत ( कुछ समय पहले गोरखपुर जिलान्तर्गत) कसया नामक कसबेके पास अनुरुधवाके दूहों पर स्थित था । बौद्धकालीन गणतंत्र बड़े बड़े राज्य नहीं थे । उन राज्यों में राजधानी और उनके श्रास पास के प्रदेश सम्मिलित होते थे; संभवतः ये यूनानके 'नगरराष्ट्रों' से कुछ बड़े थे । इस परिस्थितिमें पावा कहीं कुशीनगर के पास स्थित होनी चाहिये । पावाका स्थान -- पावाकी स्थिति और दिशा के संकेत बौद्ध साहित्य में निम्न रूपसे मिलते हैं १. प्रसिद्ध बौद्ध ग्रन्थ 'महापरिनिब्बान सुत्तान्त' में निर्वाणके पूर्व भगवान् बुद्धकी राजगृह से कुशीनगर तककी यात्राके मार्ग और चारिका का वर्णन मिलता है । इसके अनुसार वे राजगृहसे नालन्दा, नालन्दासे पाटलिपुत्र ( जो अभी बस रहा था ), पाटलिपुत्र से कोटिग्राम, कोटिग्रामसे नादिका, नादिका से वैशाली, वैशालीसे भण्डुग्राम, भण्डुग्राम से हस्तिग्राम ( हथुश्रा के पास ), हस्तिग्राम से अम्बग्राम (मिया), श्रम्बग्राम से जम्बुग्राम, जम्बुग्राम से भोगनगर ( बदरांव ), भोगनगरसे पावा और पावासे कुशीनगर गये । इस यात्रा-क्रममें पावा भोगनगर ( बदरांव ) और कुशीनगर के बीच में होनी चाहिये । एक बात और ध्यान देनेकी है । भगवान् बुद्ध रक्तातिसारसे पीडित होते हुए भी पावासे कुशीनगर पैदल एक दिन में विश्राम करते हुए पहुंचे थे । श्रतएव पावा कुशीनगर से एक दिनकी हलकी यात्राकी दूरी पर स्थित होनी चाहिये । २. दूसरे बौद्ध ग्रन्थ 'चुल्लनिदेसके' 'मिङ्गिय सुत्तमें' भी एक यात्राका उल्लेख है । इसमें हेमक, नन्द, दूभय, आदि जटिल साधु अल्लक से चले थे और उनके मार्ग में क्रमशः निम्न लिखित नगर पड़े । कोसम्बञ्श्चापि साकेतं सावत्थिं च पुरुत्तमं । सोतव्यं कपिलवत्थं कुसिनारञ्च मंदिरं ॥ पावञ्च भोगनगरं वेसालि मागमं पुरं । २१२
SR No.012085
Book TitleVarni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhushalchandra Gorawala
PublisherVarni Hirak Jayanti Mahotsav Samiti
Publication Year1950
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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