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________________ शिक्षा की दृष्टि से समाधिमरणका महत्व श्री दशरथलाल जैन 'कौशल' इस विज्ञान के युग में संसारकी अांखें मानव समाजके शिक्षणकी ओर बलात् श्राकर्षित हो रही हैं । विद्वान् बच्चोंके शिक्षा प्रारम्भकी अवस्था के सम्बन्ध में विचार करते हैं । पहले शिक्षा प्रारम्भकी वय १७, १८, वर्ष थी लेकिन २० वर्ष शिक्षा में बितानेका तात्पर्य होता है पंचमांश काल यों ही व्यतीत कर देना । इसलिए बालकों के शिक्षणकी उम्र ८, १० वर्ष निर्धारित की गयी । लेकिन १० वर्ष भी शिक्षामय विता देना लोगोंको असह्य मालूम होने लगा और उन्होंने निश्चय किया कि जब बच्चे साधारणतया बोलने चालने और समझने लायक हो जाते हैं तबसे शिक्षण प्रारम्भ किया जाय इस प्रकार ५ वर्षकी उम्र शिक्षण प्रारम्भके लिए उपयुक्त समझी गयी । लेकिन मनुष्य जीवनकी कीमत समझने वाले विद्वानोंको इससे भी संतोष न हुआ और वे सोचने लगे कि बच्चे जब खेलते हैं तभी खेल के द्वारा उन्हें शिक्षा देनेकी कोशिश क्यों न की जाय । फल स्वरूप 'किंडर गार्डन' द्वारा अक्षरों व अंकोंके श्राकारादिका ज्ञान करा देनेकी व्यवहारिक सूझ पेश की गयी । हमारे विचारशील शिक्षा विशारदोंको बच्चेका वह डेढ़ दो वर्ष जब कि वह माता का दूध ही पीता रहता है उस काल में भी उसे कुछ शिक्षा क्यों न दीक्षा दी जाय इसकी धुन सवार हुई है । मांके दूधके साथ उस बालकको शिक्षण प्रारम्भ करनेके लिए उन्होंने यह खोजपूर्ण निष्कर्ष दिया कि यदि शिक्षिता और सद्विचारपूर्ण हो और बच्चेको दुग्ध पान कराते समय सुन्दर भावनाएं उसके हृदय में जागृत रहें तो बच्चे पर शिक्षा के संस्कार डाले जा सकते है । इसपर भी काफी अमल किया गया और इस प्रयोगकी सफलता निसंदेह मान्य की गयी । यही कारण है कि हम प्रत्येक धर्म और जाति में जन्मके समय उनकी धारणाओं के अनुसार कुछ न कुछ संस्कारोंका रिवाज पाते हैं । शोधके कार्योंसे कभी तृप्त न होनेकी वृत्तिके कारण विद्वान् इसके भी आगे सूक्ष्म विचार में लीन रहे । इटली में भी कुछ काल पहले एक शिक्षा विशारद विद्वान्ने अपनी खोजको आगे बढ़ाया और उन्होंने अपना यह निश्चय किया कि बच्चे के जन्म के समय में शिक्षण संस्कार डालने के स्थानपर यदि जब बच्चा गर्भमें रहता है तभी उसके हृदयपर माताके हृदयका संस्कार पड़े तो बालक भी वैसा ही होना चाहिये क्योंकि गर्भावस्था में बालकका हृदय माताके हृदय से संबद्ध रहता है माताके विचार उन नौ मासमें जैसे रहेंगे जन्म होनेपर १६०
SR No.012085
Book TitleVarni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhushalchandra Gorawala
PublisherVarni Hirak Jayanti Mahotsav Samiti
Publication Year1950
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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