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________________ वेदनीय कर्म और परीषह प्राचार्य ने स्वीकार किया है, कि कुछ परीषह रागके और कुछ द्वेषके उदय होनेसे होती हैं । यदि केवल वेदनीय कर्मसे तेरहवें गुणस्थानमें परीषह मानी जाय तो फिर परिषह जयकी वहां सम्भावना ही नहीं रहे गी। असाताका उदय होनेसे असाता जन्य परीषह बराबर फल देती रहे गी। उन परीषहों पर विजय करनेका यहां कोई साधन नहीं है। अतः केवली अवस्थामें परिषह जयकी संभावना ही नहीं मानना चाहिए। फलितार्थ श्वेताम्बर तथा दिगम्बर दोनों सम्प्रदायोंके प्राचार्योंने परीषहके आने पर राग द्वेषको दूर करना ही परिषह जय कहा है । तेरहवें गुणस्थानमें राग द्वेषका सर्वथा अभाव होता है । अतः केवली अवस्थामें वेदनीय कर्म रहने पर भी परिषहोंकी संभावना नहीं होती। RBHA POAD १५१
SR No.012085
Book TitleVarni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhushalchandra Gorawala
PublisherVarni Hirak Jayanti Mahotsav Samiti
Publication Year1950
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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