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अहिंसा की पूर्व परम्परा पर सहिष्णु और अहिंसामय सत्याग्रहके आगे उसकी सत्ता हार जाती है, वह अभी अभी दुनियां फिरसे जानने, समझने और मनन करने लगी है ।
पार्श्व तीर्थङ्करने सूक्ष्म जन्तुओं पर भी दया दिखाना लोगोंको सिखाया। बुद्ध ने उस दयाका प्रभाव मनुष्य जातिको अोर बताया । पर इन दो महा विभूतियोंने दयाके साथ शारीरिक परिश्रमको नहीं बांधा । ईसाने अपने शिष्योंको शारीरिक श्रमके लिए मना नहीं किया। पर इन तीनोंने अहिंसाको केवल सिद्धान्तरूपमें संसारके सामने रक्खा उसे व्यवहारिक रूप नहीं दिया। शासन व्यवस्थासे उसका सम्बन्ध पहले पहल टालस्टायने किया, किन्तु इस सिद्धान्तको भी व्यवहारमें लानेका सर्वप्रथम श्रेय महात्मा गांधीको ही है। उन्होंने सर्वप्रथम संसारको दिखाया कि राजनीतिक क्षेत्रमें भी
नहि वेरेन वेरानि सम्मन्ति ध कदाचन ।
अवेरेन च सम्मन्त ध एसधमो सनन्तनो ॥ अर्थात्-वैर से वैर बुझता नहीं, वह मैत्रीसे ही बुझता है.--यही सनातन धर्म है ।