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वों-अभिनन्दन-ग्रन्थ
उपसंहार
सबका निष्कर्ष यह है कि अनन्त-माला या अनन्त-प्रचय स्व-विरोधी नहीं है। यह बात उस समय सहज ही हृदयग्राही हो जाती है, जब यह स्मरण रखा जाय कि साधारण सन्त अंकोंका सम्बन्ध अनंत अंकोंसे नहीं हो सकता है। एक अनंत समुदाय कितनी ही बड़ी संख्या घटाने या जोड़नेसे न तो क्षीयमान होगा और न वर्धमान होगा। अनंत-माला सादि हो किंतु सन्त न हो अथवा वह अनादि अनंत ही हो गणितके ये निश्चय भौतिक विज्ञान के जैन-प्राचार्योंने अपने दार्शनिक सिद्धान्तोंके विशद विवेचनमें भी प्रयुक्त किये थे।
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