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________________ मानवजीवनमें जैनाचारकी उपयोगिता श्री पं० जगन्मोहनलाल जैन सिद्धन्तशास्त्री प्रकृत विषयको जाननेके पूर्व यह अत्यन्त आवश्यक है कि हम मानव समाजकी पूर्वापर स्थितिको जान लें तथा अाचारकी आवश्यकता मनुष्यको कब उत्पन्न हुई ? और जैन मान्यताके अनुसार उसका मूलाधार क्या है ? इसकी भी विवेचना करें । ___ जैन मान्यता यह है कि यह जगत् अनादि कालसे है और अनन्तकाल तक रहे गा । परिवर्तनशील होते हुए भी न इसका कोई एक नियन्ता है और न विनाशकर्ता है । सर्ग स्थिति-प्रलय यह वस्तुमात्र का स्वभाव है । एक परमाणु भी इस नियमका अपवाद रूप नहीं है। प्रति समय जगत् तथा उसके प्रत्येक अंशका परिवर्तन अनिवार्य है । कोई शक्ति या कोई व्यक्ति इस स्वाभाविक प्रवृत्तिको रोक नहीं सकता । जगतकी स्थितिके साथ मानव समाजकी स्थिति है। अन्य जीवधारियोंकी अपेक्षा मनुष्य बुद्धि-वैभवशाली होनेसे श्रेष्ठ प्राणी माना गया है । माना भी जाना चाहिये, क्यों कि ज्ञान (चैतन्य ) ही तो जीवका मूल स्वभाव है, वही उसका धन है। जो प्राणी अधिक से अधिक ज्ञान रखता है उसे श्रेष्ठ कहलानेका अधिकार है । मानव समाजको हम आज जिस रूपमें देख रहे हैं वह सदासे ऐसा था यह बात नहीं है । कभी उन्नतिका और कभी अवनतिका समय अाता रहता है इसे जैन शास्त्रों में क्रमशः 'उत्सर्पिणो' काल और 'अवसर्पिणो' काल कहा है । काल क्रमसे जब उन्नति चरम सोमापर पहुंच जाती है तब अवनतिका काल प्रारम्भ हो जाता है, और जब अवनति चरम सीमापर पहुंच जाती है तब उन्नतिका काल प्रारम्भ हो जाता है । हिंडोलेको पालकीको तरह उत्सर्पिणीसे अवसर्पिणी और अवसर्पिणी से उत्सर्पिणो कालका परिवर्तन सदासे, होता आया है और सदा होता जायगा। प्रत्येक काल दो भागोंमें विभाजित है चाहे वह उन्नति काल हो या अवनति काल, एक भाग “भोग भूमि" कहलाता है, ओर दूसरा भाग "कर्मभूमि'। वर्तमान काल जिसे अाजका संसार उन्नतिका काल कहता है जैन मान्यताके अनुसार "अवसर्पिणी काल" है । अवसर्पिणी कालका प्रारम्भ का हिस्सा 'भोगभूमि' था और वर्तमानका कालांश 'कर्मभूमि' का है। इस कालके प्रारम्भमें मानव समाजकी क्या स्थिति थी ! और उसका विकास कैसे हुआ इन प्रश्नोंपर प्रकाश डालना आवश्यक है । १०५ १४
SR No.012085
Book TitleVarni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhushalchandra Gorawala
PublisherVarni Hirak Jayanti Mahotsav Samiti
Publication Year1950
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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