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________________ बौद्ध प्रमाण सिद्धान्तोंकी जैन-समीक्षा श्री प्रा० हरिमोहन भट्टाचार्य, एम. ए०, आदि बौद्ध दर्शनके सुविख्यात चार सम्प्रदायोंमें से वैभाषिक, सौत्रान्तिक तथा योगाचारके विद्वानों का भारतीय प्रमाण चर्चा में पर्याप्त योगदान है। यहां इन तीनों सम्प्रदायोंकी प्रमाण विषयक मान्यताओंका विचार करके हम जैन प्रमाण दृष्टि से उनका मूल्याङ्कन करेंगे। सब ही बौद्ध सम्प्रदायोंके अनुसार प्रत्येक वस्तु अनित्य है, एक क्षण रहती है, दूसरे क्षण नष्ट होती हुई दूसरेको उत्पन्न होने देती है । अर्थात् आत्माका ज्ञान भी नित्य नहीं है। यह सब ज्ञान सन्तान है। इनमें प्रत्येकका कार्य; अर्थात् अात्म सदृशकी उत्पत्तिमें कारणतासे-निश्चय होता है, जिसे बौद्ध 'प्रतीत्यसमुत्पाद' कहते हैं जिसका तात्पर्य धारावाही ( आश्रित ) उत्पत्ति होता है अथात् ज्ञानमें इन्द्रियां निमित्त नहीं है, सब कुछ छाया ( संस्कार ) मात्र है ज्ञान तथा ज्ञेयमें कोई अन्तर नहीं है। इन मूल मान्यताओंपर दृष्टि रखने पर बौद्ध तत्त्वज्ञानको समझना सरल हो जाता है। वैभाषिक प्रमाण सिद्धान्त तथा समीक्षा-- वैभाषिक वास्तविकताको मानता है उसके अनुसार प्रत्येक पदार्थका ज्ञान साक्षात्कारसे होता है किन्तु उसका प्रमाण निराकार बोध स्वरूप है । किन्तु यह सुविदित है कि प्रमाणकी प्रामाणिकताके विशेष लक्षण होते हैं जो कि इसे साधारण बोधसे पृथक् सिद्ध करते हैं। अतएव निराकार बोध रूपसे की गयी प्रमाण परिभाषा उसके अभीष्टको सिद्ध नहीं करतो। किसी पदार्थकी परिभाषाका तात्पर्य ही असाधारण धर्मोंको बताना है जो कि उसे सजातोय तथा समानसे पृथक् सिद्ध करते हैं । किन्तु प्रमाणकी 'निराकार बोध' परिभाषा करके वैभाषिक हमें विशेष लक्षणहान साधारण बोधको बताता है और अपनी परिभाषाका अतिव्यात ' कर देता है । इस प्रकार संशय, विपर्यय, अनध्यवसाय, श्रादि प्रमाणाभासोंका भी ग्रहण हो जाता है । प्रमाण तथा प्रमाणाभासका भेद तो लुप्त हो ही जाता है । इसका दूसरा परिणाम यह भो होगा कि इन्द्रिय, श्रादि बोधके साधारण कारण भी प्रमाण हो जायगे जैसे कि साधारणतया कहा जाता है-दीपकसे घड़ी देखी, अांखसे पहिचाना, धुएसे भागको जाना, आदि । इन सबकी प्रामाणिकता १ बोधप्रमाणमिति वदन्तो वैभाषिकाः पर्यानुयोज्याः । त बो. विधा. पृ ४५८ ।
SR No.012085
Book TitleVarni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhushalchandra Gorawala
PublisherVarni Hirak Jayanti Mahotsav Samiti
Publication Year1950
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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