SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 14
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रकाशकी ओरसे जिन महाशयों ने आभार में दत्त आर्थिक सहयोग देकर हमें आथिक चिन्ता से उन्मुक्त किया है उनका भी मैं उतना ही ऋणी हैं जितना कि विद्वान लेखकों का हं। श्री गणेश दि० जैन विद्यालय सागर की प्रबन्ध-कारिणी ने २०००) उधार देकर कार्य को नहीं रुकने दिया। विज्ञप्ति निकालने पर जिन ग्राहकों ने पांच पांच रुपया पेशगी तथा पूरा मूल्य भेजकर हमें सहयोग दिया है उनके भी हम आभारी है। आर्थिक चिन्ता के न्यूनतर होने पर भी कागज पर सरकारी नियन्त्रण रहने के कारण उसकी प्राप्ति में बहुत समय खोना पड़ा। अन्त में जब कुछ उपाय न दिखा तब श्री बालचन्द्रजी मलया ने आदमी भेज कर एक गांठ बम्बई से बनारस भिजवायी जिससे प्रकाशन का कार्य प्रारम्भ हो सका। बीच-बीच में प्रेस की परतन्त्रता से कार्य रुक-रुक कर हुआ। अतः ग्रन्थ के प्रकाशन में आशातीत विलम्ब हो गया। चूंकि ग्रन्थ-समर्पण खास अङ्ग था अतः उसके अभाव में हीरक जयन्ती महोत्सव भी टलता रहा। इस महान ग्रन्थ में क्या है, यह लिखने की आवश्यकता नहीं। फिर भी मेरा ख्याल है कि श्री खुशालचन्द्र जीने इसे सर्वाङ्ग पूर्ण बनाने के लिए पर्याप्त श्राम किया है और अभिनन्दन के साथ-साथं दार्शनिक, सैद्धान्तिक, साहित्यिक एवं सांस्कृतिक ऐसी उत्तम सामग्री का संकलन किया है जो कि वर्तमान तथा आगामी पीढ़ी के लिए सदा ज्ञान-वर्धक होगी। इस गुरुतम भार को वहन करने के साथ-साथ आधे के लगभग धन इकट्ठा करना भी इनके प्रभाव और प्रयास का कार्य है। अतः मैं इनका आभारी हूं। वर्णी-हीरक-जयन्ती-समिति के क्रमशः अध्यक्ष तथा मंत्री श्री बालचन्द्रजी मलैया और श्री नाथूरामजी गोदरे ने बड़ी तत्परता और लगन के साथ इन समस्त कार्यों का प्रारम्भिक संघटन किया है जिसके लिए मैं आभारी हूँ। धन्यवाद के प्रकरण में श्री पं० मन्नालालजी रांधेलीय, सागर और पं० वंशीधरजी, व्याकरणाचार्य, बीना का नामोल्लेख करना में अत्यन्त आवश्यक समझता हैं जिन्होंने कि अपनी अमूल्य सम्मतियों द्वारा इस मार्ग को प्रशस्त बनाया है। निज की इच्छा तो यह थी कि यह ग्रन्थ अमूल्य अथवा अल्पमूल्य में ही पाठकों को सुलभ रहता परन्तु अधिकांश दूरदर्शी सदस्यों की यह सम्मति हुई कि ग्रन्थका महत्त्व न गिराने के लिए इसका मूल्य रखा ही जाय तथा जो भी द्रव्य विक्रय से आवे उसके द्वारा पूज्य श्री वर्णीजी की परम प्रिय शिक्षा-संस्थाओं-स्या० वि० बनारस तथा वर्णी विद्यालय, सागर का पोषण किया जाय। ऐसा करने से दानी महानुभावों द्वारा उदारतावश दिया हुआ द्रव्य भी सुरक्षित रह सकेगा। अन्त में अपने समस्त सहयोगियों का पुन: पुनः आभार मानता हुआ त्रुटियों के लिए क्षमा प्रार्थी हूं। नम्र, वर्णीभवन-सागर पन्नालाल जैन, साहित्याचार्य २।१०।४९, ___ संयुक्तमंत्री, वर्णी हीरक जयन्ती-समिति।
SR No.012085
Book TitleVarni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhushalchandra Gorawala
PublisherVarni Hirak Jayanti Mahotsav Samiti
Publication Year1950
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy