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________________ प्रकाशक की ओरसे मार्च सन् १९४४ की बात है। पूज्य बाबा गणेशप्रसादजी वर्णी ईसरी से ७ वर्ष बाद पैदल भ्रमण करते हुए सागर पधारने को थे। सागर ही नहीं समस्त बुन्देलखण्डमें एक विशेष प्रकार का समुल्लास छा गाया था। ग्राम-ग्राम में जैन-अजैन जनता ने उनके स्वागत की अपूर्व तयारियां की थीं। सागर की जैन समाज ने इस बात का आयोजन किया कि जब वर्णी जी सागर पधारें तब उनकी सत्तरवीं वर्षगांठ पर हीरक जयन्ती मनायी जाय। इसके लिए स्थानीय लोगों की कई उपसमितियां बना कर व्यवस्था का कार्य-विभाजन भी कर दिया। पत्रों में इस बात का प्रचार किया गया कुछ लोग अध्यक्ष का पद स्वीकृत कराने के लिए श्री साहु शान्तिप्रसादजी डालमियांनगर के पास भी गये । इस समाचार से साधारण जनता का उल्लास जहां कई गुना बढ़ा वहां कुछ विचारक लोगों ने इस आशय के भी पत्र लिखे और खास कर साहु शान्तिप्रसादजी ने उनके पास पहुंचे हुए आमन्त्रकों से अपने विचार प्रकट किये "जब पूज्य वर्णीजी समस्त भारतवर्ष की अनुपम निधि है तब उनकी हीरक जयन्ती का महोत्सव किसी केन्द्र स्थान में न मनाया जाकर सागर जैसे स्थान में मनाया जाय इसमें शोभा कम दिखती है। समस्त भारतवर्ष के प्रतिनिधियों का सहयोग लेकर केन्द्र स्थान में ही यह कार्य करना चाहिये।" साहजी की सम्मति पर जब विचार किया तब उसमें तथ्य ही अधिक दिखा। फलतः २४३-१९४४ को सागर की जैन-समाज ने अपनी एक आम सभा में निम्नलिखित प्रस्ताव द्वारा हीरक जयन्ती का आयोजन स्थगित कर दिया। 'सागरस्थ जैन समाज गम्भीरतापूर्वक अनुभव करता है कि जिन त्याग-मूर्ति प्रातःस्मरणीय पूज्य पं० गणेशप्रसाद जी वर्णी के अनिर्वचनीय उपकारों से नम्रीभूत हो कर उनके प्रति कृतज्ञता प्रकाशनार्थ उनकी हीरक जयन्ती मनाने की आयोजना हमारे द्वारा की जाती है वे वास्तव में सिर्फ हम लोगों के ही गौरव एवं आदर की प्रतिमूर्ति नहीं है बल्कि अखिल दि० जैन समाज की विभूति है अतः उनके प्रति श्रद्धांजलि समर्पण करने का सबको हक है और सभी लोग इसके लिए हृदय से उत्कण्ठित है। इतना ही नहीं, इस विषय में हमारे पास अनेक माननीय सम्मतियां आयी है, कि परमपूज्य वर्णी जी जैसे महान् पुरुष की हीरक जयन्ती एक देशीय (एक स्थानीय) न बना कर सर्वदेशीय बनाइये। तदनुसार यह परामर्श सर्वथा हितकर उचित एवं सामयिक प्रतीत होता है । इसलिए सागर समाज सम्प्रति इस हीरक जयन्ती की आयोजना को स्थगित करती है परन्तु उनके शुभागमन के हर्ष में यह उत्सव सम्मान-महोत्सव के रूप में मनाया जावे।' . हीरक जयन्ती का महान् कार्यक्रम स्थगित हो गया इससे स्थानीय कार्यकर्ताओं के उत्साह में कोई न्यूनता नहीं आयी और ता० २५ को प्रातःकाल ज्यों ही वर्णी जी महाराज सागर शहर के नाके पर आये त्यों ही सहस्रों नर-नारियों का समूह गाजे-बाजे के साथ उनके स्वागत के लिए उमड़ पड़ा। शहर के प्रत्येक प्रधान मार्ग तोरणों, पताकाओं और बन्दनमालाओं से अलंकृत किया गया था। जंगह
SR No.012085
Book TitleVarni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhushalchandra Gorawala
PublisherVarni Hirak Jayanti Mahotsav Samiti
Publication Year1950
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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