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और यह निष्पत्ति उक्त निर्णय की फलश्रुति प्रस्तुत अभिनन्दन ग्रन्थ है। इस अभिनन्दन ग्रन्थ को सुधी पाठकों के करकमलों में सोंपते हुए हार्दिक प्रसन्नता की अनुभूति हो रही है।
इसमें तीन खण्ड हैं - प्रथम खण्ड में आशीर्वचन और शुभकामनाएँ समाविष्ट हैं, द्वितीय खण्ड में अभिनन्दनीय का जीवनवृत्त और उनके द्वारा प्रणीत साहित्य की समीक्षाएँ हैं, और तृतीय खण्ड में महत्त्वपूर्ण विषयों पर मनीषी चिन्तकों के शोध-खोजपूर्ण आलेख सन्नद्ध हैं। समासतः कह सकते हैं कि एक सम्पुट में भारतीय मनीषा के संज्ञापक-इतिहास, संस्कृति, पुराविद्या, धर्मशास्त्र, दर्शनशास्त्र, मनोविज्ञान, मानविकी और विज्ञान आदि से सम्बद्ध जैन विद्याओं के विभिन्न पक्षों को उद्घाटित करने वाली सामग्री संग्रथित है। इस सबके आधार पर यह कालजयी कृति है। वस्तुतः इस ग्रन्थ को व्यक्ति विशेष के केवल गुणानुवाद के रूप में नहीं, प्रत्युत भारतीय मनीषा के परिचायक बिम्ब के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है।
कृतज्ञता प्रकाश इस अभिनन्दन ग्रन्थ की संयोजना और मूर्तरूप धारण करने में अर्थात् – अथ से इति तक - परमपूज्य आचार्य भगवंतों, साधु-संतों, आर्यिका माताओं, मनीषियों, आलेख प्रस्तोताओं, कवि-मित्रों और समीक्षक महानुभावों का हार्दिक सहयोग उल्लेखनीय है। इनके शुभाशीष, मार्गदर्शन और सक्रिय सहयोग के बिना इस रूप में इस ग्रन्थ की परिकल्पना भी नहीं की जा सकती थी। __अभिनन्दन ग्रन्थ के माननीय सम्पादक मण्डल के सदस्यों, प्रधान, प्रबन्ध एवं सम्पादक मंडल तथा प्रकाशन समिति के समस्त पदाधिकारियों तथा सदस्यों और इसे अक्षर संयोजन में श्री विपुलभाई मिस्त्री एवं मुद्रित कार्य में श्री हरिओम प्रेस के संचालक श्री हसमुखभाई पटेल के प्रति अनेकशः विनय तथा कृतज्ञता प्रकाशित करते हैं।
डॉ. शेखरचन्द्र जैन और उनके परिवार ने ग्रन्थ हेतु सर्वविध जानकारी और सामग्री सुलभ कराके महत्त्वपूर्ण सहयोग किया है। इसके प्रति उन सभी के प्रति हार्दिक साधुवाद।
माननीय डॉ. शेखरचन्द्र जैन इस विविध वर्ण, गन्ध और भावों से सम्बन्धित गुच्छक को सादर स्वीकार करें। 'मूल्य पुजापे का नहीं, पुजारी के भावों का आंके' ऐसा सादर अनुरोध है।
सादर अनुरोध
इस अभिनन्दन ग्रन्थ हेतु प्रकाशनार्थ पर्याप्त सामग्री प्राप्त हुई। सब श्रेष्ठ थी। सुधी लेखक इस तथ्य से अवगत हैं कि सम्पादक का कार्य बहुत कठिन है। उसे विविधता में एकता को पिरोकर एक सुन्दर समन्वित पुष्प-गुच्छक प्रस्तुत करना होता है। इस दृष्टि से यदि किसी महानुभाव द्वारा प्रेषित सामग्री का उपयोग इस ग्रन्थ में नहीं हो सका तो ऐसे महानुभाव से हम खेदपूर्वक क्षमायाचना करते हैं और पूर्ववत् आत्मीय भाव की कामना करते हैं।
डॉ. शेखरचन्द्र जैन अभिनन्दन ग्रन्थ प्रकाशन समिति और सम्पादक मण्डल ने इसे सर्वांगीण बनाने का विनत उपक्रम किया है। किन्तु समय अथ च साधन सीमा, अनेक विध व्यस्तताओं और विपरीत परिस्थितियों के बावजूद यदि यह ग्रन्थ सुधी और सहृदय पाठकों के मानकों पर खरा उतरा तो हम सभी का श्रम सार्थक होगा। आपका स्नेह, आत्मीय भाव और मार्गदर्शन हमारा सम्बल है। अन्त में अनुरोध है
गच्छतः स्खलनंक्वापि, भवत्येव प्रमादतः।
हसन्ति दुर्जनास्तत्र, समादधति सज्जनाः॥ इति शुभम्।
विदुषां वशंवदः प्रो. भागचन्द्र जैन 'भागेन्दु'
(प्रधान सम्पादक)