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________________ बात से मैं उनसे प्रभावित हुआ, वह थी उनकी स्पष्टवादिता और सरलता। दूसरी बार मेरा उनसे मिलना हुआ - जुलाई-२००५ में अमरीका के सान्ताक्लारा शहर में हुए जैन एसोसिएशन आफ नार्थ अमरीका (जैना) के । सम्मेलन में, जहाँ उन्होंने और मैंने जैन धर्म पर प्रवचन किए थे। अन्त में फिर मेरी ओर से बहुत शुभ कामनाएँ। डॉ. जगदीशप्रसाद जैन 'साधक' अध्यक्ष-जैन मिशन, नई दिल्ली कू बुन्देल भूमि के गौरव ___ बुन्देल भूमि को वर्तमान में भारत एवं भारतोत्तर देशों के अनेक क्षेत्रों में कार्यरत जैन विद्वानों एवं व्यवसायियों की जननी होने का गौरव प्राप्त है। आदरणीय डॉ. शेखरजी इसी क्षेत्र की एक विभूति हैं। साधारण परिवार में जन्मे उन्होंने अपने अथक परिश्रम एवं निष्ठा से उच्चतर अध्ययन किया और अध्यापन, विविधपूर्ण लेखन, शोध एवं शोधकरों को मार्गदर्शन, संस्था-प्रबंधन, प्रवचन एवं मंत्र ध्यान आदि क्षेत्रों में असाधारणता प्राप्त की है। ___ मैं उनसे अनेक वर्षों से परिचित हूँ। उन्होंने मेरे अनेक कार्यों में सहयोग दिया है। मैंने उनका आतिथ्य भी पाया है. उनकी एक लोकप्रिय पुस्तक का मैंने अंग्रेजी अनुवाद भी किया है। इन सभी अवसरों पर मुझे उनकी सरलता एवं सहजता ने मोहित किया है। उनके इस स्वभाव ने उनकी क्रियाशीलता को बहु-आयामी बनाया है। इससे उन्हें देश-विदेश के धार्मिक एवं सामाजिक नेतृत्व एवं साधु-संतों का आशीर्वाद एवं सहयोग मिला है। तीर्थंकर वाणी, आशापुरा मां जैन हास्पिटल एवं अनेक संस्थाओं का पदाधिकारित्व एवं मार्गदर्शन इसी का | परिणाम है। स्पष्ट वक्ता होने से उनकी प्रभाविता में चार चांद लग गये हैं। मैं कामना करता हूं कि वे दीर्घजीवी होकर धर्म और समाज की सेवा करते रहें। बुन्देल भूमि ऐसे ही व्यक्तियों से गौरवान्वित होती रही है। डॉ. नंदलाल जैन (रीवा) कर्मठ विद्वान एवं निष्काम सेवक जिनवाणी के संदेश को जन-जन तक पहुँचाना महत्वपूर्ण धार्मिक कार्य है। अध्ययन और स्वाध्याय द्वारा आगम ज्ञान को अर्जित कर कुछ विद्वान इस कार्य को गति दे रहे हैं तो कुछ पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से अपने और प्रबुद्ध चिंतकों के विचार पाठकों तक पहुँचा रहे हैं। डॉ. शेखरचन्द्र जैन ऐसी दोहरी भूमिका का निर्वहन कर रहे हैं। आप आगम ज्ञान को भारत में ही नहीं विदेशों में भी प्रचारित-प्रसारित कर रहे हैं और 'तीर्थंकर वाणी' पत्रिका के संपादक के रूप में अपने प्रखर विचारों से जैन समाज को जागरूप बनाने और उन्हें धर्म-प्रभावना के लिए प्रेरित करने का सराहनीय कार्य कर रहे हैं। पिछले सात-आठ वर्षों से परम पूज्य आचार्य श्री कनकनंदी जी गुरुदेव द्वारा आयोजित संगोष्ठियों व अन्य कार्यक्रमों में मेरा आपसे गहन सम्पर्क हुआ। 'जैना' संस्थान के वर्ष 2005 के स्वर्ण जयंति अधिवेशन में केलिफोर्निया में भी आपके साथ रहने का अवसर प्राप्त हुआ। आपकी प्रतिभा, निष्ठा, समर्पण और उत्साह से जिनवाणी की महती सेवा देखकर हार्दिक प्रसन्नता होती है। समन्वय ध्यान साधना केन्द्र अहमदाबाद के माध्यम से निर्धन असहाय पीड़ितो को स्वास्थ्य लाभ पहुंचाना आपकी निष्काम सेवा भावना का अनुकरणीय उदाहरण है। जिन शासन के ऐसे कर्मठ, विद्वान ओर निष्काम सेवक का अभिनंदन करना हमारा कर्तव्य है। अभिनंदन
SR No.012084
Book TitleShekharchandra Jain Abhinandan Granth Smrutiyo ke Vatayan Se
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShekharchandra Jain Abhinandan Samiti
PublisherShekharchandra Jain Abhinandan Samiti
Publication Year2007
Total Pages580
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size21 MB
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