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________________ 418 (300 आगम साहित्य में आयुर्वेद (चिकित्सा विज्ञान) आचार्य राजकुमार जैन मनुष्य सामान्यतः शारीरिक रूप से और मानसिक रूप से स्वस्थ रहे यह परमावश्यक है। शरीर या मन का अस्वस्थ होना मनुष्य के लिए कष्टदायक या दुःखकारक होता है। मनुष्य शारीरिक एवं मानसिक रूप से स्वस्थ रहने पर ही धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष रूप पुरुषार्थ चतुष्टय को प्राप्त करने में समर्थ हो सकता है। इसलिए आरोग्य को उपर्युक्त चतुर्विध पुरूषार्थ का मूल बतलाया है - 'धर्मार्थ काम मोक्षाणां आरोग्य मूलमुत्तमम्' इस पुरुषार्थ चतुष्टय में ही मनुष्य जीवन के समस्त क्रिया-कलाप अन्त-निहित हो जाते हैं। मनुष्य अपने जीवन में जो भी कार्य व्यापार जिस किसी भी रूप में करता है वह उपर्युक्त पुरुषार्थ चतुष्टय से बाहर नहीं है और आरोग्य के बिना इनका साधन सम्भव नहीं है। शरीर की निरोगता तथा मन मस्तिष्क की स्वस्थता मनुष्य के अहर्निश चलने वाले जीवन । चक्र के सुचारू संचालन में सहायक होती है। पुरुषार्थ चतुष्टय में सर्वप्रथम है धर्म। धार्मिक वृत्ति रखना या धर्माचरण करना अथवा धार्मिक कार्यों में प्रवृत्ति करना, भाग लेना धार्मिक कार्यों का आयोजन करना मात्र ही धर्म नहीं है। धर्म एक जीवन पद्धति है जो मनुष्य के जन्म के साथ ही जुड़ जाती है। इसमें मनुष्य और समाज के शारीरिक एवं आध्यात्मिक सुख की संवाहक आचार संहिता का समावेश है। मनुष्य द्वारा किए जाने वाले समस्त क्रिया व्यापार में नैतिकता पूर्ण आचरण एवं विवेक पूर्ण चिन्तन का समावेश भी धर्म में अन्तर्निहित है। अतः धर्म का क्षेत्र अत्यन्त व्यापक है। यह एक ऐसा पुरूषार्थ है जो सुख की अभिवृद्धि करता है और कष्टों दुखों की निवृत्ति करता है। स्थानांग (पृ. 850 एवं 920-921) में लब्धि एवं निग्रहसहित दस प्रकार के सुखों का वर्णन है। उसमें स्वास्थ्य और दीर्घायु सर्वोपरि है। यदि मनुष्य शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ नहीं होता है तो अन्य सभी सुख उसके लिए निष्प्रयोजन रूप हैं। सभी प्रकार के सुख एवं दुःख का अनुभव मन को होता है। सभी प्रकार के रोगों का अधिष्ठान शरीर और मन है। व्याधिग्रस्त शरीर और मन कभी सुख को प्रतीति नहीं कर सकते हैं। अतः यह आवश्यक है कि सर्व प्रथम शरीर को व्याधि मुक्त करने का उपाय किया जाये। तदर्थ सर्व प्रथम सम्पूर्ण शरीर की संरचना एवं शरीर में विद्यमान समस्त
SR No.012084
Book TitleShekharchandra Jain Abhinandan Granth Smrutiyo ke Vatayan Se
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShekharchandra Jain Abhinandan Samiti
PublisherShekharchandra Jain Abhinandan Samiti
Publication Year2007
Total Pages580
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size21 MB
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