________________
1394
कितना । मेरी दृष्टि में, प्रकृति को बिना नष्ट किये अथवा इसके स्वभाव को बिना परिवर्तित किये, प्रकृति में उपलब्ध
खाद्य पदार्थों को अपने उपयोग हेतु प्राप्त करना एक अहिंसात्मत्मक व्यवहार है। कृषि द्वारा खाद्य पदार्थों का उत्पादन भी प्रकृति के सद्भाव के विपरीत कहा जावेगा क्योंकि खेती करने में भूमिगत अनंत जीवो की हिंसा होती हैं। परंतु कृषि द्वारा अन्न उत्पादन को किन्हीं संदर्भो / अर्थों में एक प्राकृतिक विधि कह सकते हैं क्योंकि फसल पकने (पादपों की आयु पूर्ण होने के बाद) पर फसली पौधों के वायवीय (aerial) भागों को काट कर हम अनाज / बीज प्राप्त करते है। जब हम इन पौधों की जड़ों को भूमि से अलग नहीं करते हैं तब पौधों की जड़ों पर पनप रहे अनंत सूक्ष्म जीवों की मृत्यु का कारण बनने से बचे रहते है। परंतु जब हम कंद मूलों या जमीं कंदों को जमीन से बाहर निकालते हैं तब इन पर पनप रहे अनंत सूक्ष्म जीवों की मृत्यु का कारण बनते हैं। पौधों का जड़ों के पास वाली प्रति ग्राम भूमि में करीब 10 से 10 (कुछ हजार से 10 करोड़) या इससे भी अधिक सूक्ष्म जीव पाये जाते हैं। अतः मात्र जमीं कंदों, कंद मूलों अथवा भूमिगत पादप पदार्थों के परित्याग से हम असंख्य जीवों की हिंसा के कारण (निमित्त) बनने से बच जाते हैं। परिपक्व फलों तथा सब्जियों आदि को पौधों से प्राप्त करना भी एक प्राकृतिक व्यवहार कहा जा सकता है और कुछ अर्थों में अहिंसात्मक भी। उदाहरण के लिये नीबू के पौधे से नीबुओं को तोड़ना तथा पौधे से विलग हुये पौधे को नीचे पड़े हुये नीबुओं को प्राप्त करना। दोनों
आचरणों में द्वितीय आचरण (अपेक्षाकृत) अनावश्यक हिंसक क्रिया से बचाता है। । (2) पानी को छान कर पीना या उपयोग में लाना ___पानी को छान कर पीना जैन धर्मावलंबियों का एक आवश्यक विशिष्ट गुण माना जाता है। परंतु पानी छानने
की प्रक्रिया / क्रिया विधि को समझना तथा उसका परिपालन किया जाना भी आवश्यक है। __ पानी को मोटे कपड़े के छन्ने से छान कर पीने अथवा उपयोग में लाने से हम उन दीर्घ जीवों की हिंसा से निश्चित ही बच सकते हैं जो छन्ने से बाहर नहीं निकल पाते हैं परंतु यह तभी संभव है जब हम छन्ने पर आये हुये जीवों को पुनः पानी के स्रोत में तुरंत पहुंचायें (बिल्छानी डालना)। पानी को छानते समय भी हमारी दृष्टि पानी के छन्ने पर ही होना चाहिए। ताकि विल्छानी के समय यह सुनिश्चित किया जा सके कि जीवों को उनके स्रोत तक पहुंचाया जा चुका है। समस्त जलीय जीवों के प्रति दया तथा अहिंसक भाव भी मन में होना चाहिए। पानी को छान कर उपयोग करने से हम कुछ दीर्घकाय जीवों की द्रव्य हिंसा तथा समस्त जलीय सूक्ष्म जीवों की । भाव हिंसा से बचते हैं।
सूक्ष्म दृष्टि से पानी का छन्ना साफ, गंधहीन एवं उपयोग से पहले सूखा होना चाहिये। उपयोग के बाद उसे तुरंत सूखने डालना आवश्यक है। ज्ञात हो कि पानी के छन्ने पर भी सूक्ष्म जीव नमी के कारण पनपते हैं। अतः इस दृष्टिकोण से पानी की टंकियों में कपड़े की थैलियां बंधी रखना आदि कुछ ऐसी विसंगतियाँ हैं जिन पर हमें पुनः विचार करना आवश्यक है। (3) पीने के पानी को फासू (पास्तेरीकृत, Pasteurize) करना एवं इसकी मर्यादा
पानी में जलीय सूक्ष्म जीवों की संख्या कितनी होगी यह जल के स्रोत पर निर्भर करता है। चूँकि विभिन्न स्रोतों से प्राप्त पानी का स्वाद तथा इसमें घुलित कार्बनिक एवं अकार्बनिक पदार्थों की मात्रा भिन्न हो सकती है। अतः इनमें पाये जाने वाले सूक्ष्म जीवों की संख्या भी भिन्न होगी। पानी में घुलित गैसें, कार्बनिक एवं अकार्बनिक