________________
योग एक साधनिका विकलादान
377 । विज्ञान सम्मत नहीं है। यानी आज की स्थिति में समर्थन की दिशा में कई बिन्दु हैं, विरोध की दिशा में कोई भी बिन्दु नहीं है।
प्रश्न 6: 'सोना पुद्गल द्रव्य है' - क्या यह कथन उचित है?
उत्तर : यदि इस कथन का उद्देश्य यह बताना हो कि सोना जीवद्रव्य न होकर पुद्गल है तो इस अपेक्षा यह . कथन उचित है। यदि इस कथन से यह अर्थ बताने का भाव हो कि सोना द्रव्य होने के कारण शाश्वत होना चाहिए तो यह कथन त्रुटिपूर्ण होगा।जैसाकि पूर्व में कहा गया है- द्रव्य वह है जो सत हो, व सत वह है जो उत्पाद, विनाश एवं ध्रुव युक्त हो। पुद्गल का एक परमाणु शाश्वत (ध्रुव) रहता है किन्तु उसकी अवस्था (पर्याय) प्रति समय बदलती रहती है। यानी पुद्गल परमाणु अवस्था की अपेक्षा से उत्पाद एवं विनाश को प्राप्त होता है किन्तु पुद्गल परमाणु के रूप में शाश्वत रहता है। अतः पुद्गल परमाणु सत है व द्रव्य है। जिसे हम सोना कहते हैं उसका एक कण (रासायनिक परमाणु) भी कई पुद्गल परमाणुओं का समूह या स्कन्ध है। उसमें प्रत्येक परमाणु सत है किन्तु समूह सत नहीं है। यह भी ध्यान देने योग्य है कि सोने का एक कण कई पुद्गल परमाणुओं के एक विशेष रूप में एकत्रित समूह का नाम है। वे ही पुद्गल परमाणु अन्य रूप में एकत्रित होकर चांदी या लोहा या
और कुछ भी नाम पा सकते हैं चंकि मसह का शाश्वत होना अनिवार्य नहीं है अतः इस अपेक्षा से सोना शाश्वत नहीं है।
इस तरह एक अपेक्षा से सोना पुद्गल द्रव्य कहा जा सकता है व एक अपेक्षा से पुद्गल द्रव्य नहीं है। इन दोनों तथ्यों को अनेकान्त शैली में यों कहा जाता है कि सोना निश्चय से पुद्गल द्रव्य नहीं है किन्तु व्यवहार से पुद्गल द्रव्य है। आचार्य कुन्दकुन्द ने सूत्र रूप में नियमसार गाथा 29 में यही तथ्य इस रूप में समझाया है कि निश्चय से अविभागी पुद्गल द्रव्य है किन्तु व्यवहार से स्कन्ध भी पुद्गल द्रव्य है।
आधुनिक भौतिक विज्ञान में जब नाभिकीय भौतिकी में एक विद्यार्थी यह पाता है कि हाइड्रोजन के एटम हीलियम में बदले जा सकते हैं या यूरेनियम के एटम प्लूटोनियम में बदले जा सकते हैं या अन्य किसी तरह से सोने के एटम अन्य धातु में बदले जा सकते हैं तब पुद्गल परमाणु की अविनाशिता का खण्डन नहीं होता है। ___ यहाँ एक तथ्य और ध्यान देने योग्य है, रसायन विज्ञान में सोने के एटम के विनाश एवं निर्माण की बात नही की जाती है किन्तु नाभिकीय भौतिकी में सोने के एटम के विनाश एवं निर्माण की चर्चा होती है व अध्ययन का विषय बनता है। सोने का एटम एक तरह से रसायन विज्ञान में शाश्वत है किन्तु नाभिकीय भौतिकी में अशाश्वत है। इस दृष्टि से ये दोनों विज्ञान परस्पर विरोधी प्रतीत होते हैं। ज्ञानी को विरोध नजर नहीं आता है क्योंकि वह जान रहा होता है कि किस अपेक्षा से सोने का एटम अविनाशी है व किस अपेक्षा से विनाशी।
इस चर्चा का उद्देश्य कई विरोधाभासों को सुलझाने में उपयोगी हो सकता है। जैसे यह प्रश्न उक्त चर्चा के प्रकाश में हल हो सकता है कि जीव यदि शाश्वत होता है व प्रत्येक मनुष्य यदि जीव है तो प्रत्येक मनुष्य भी शाश्वत होना चाहिए। किन्तु यह देखा जाता है कि प्रत्येक मनुष्य अशाश्वत है। ऐसा क्यों?
कुल मिलाकर इस तरह की शाश्वत-अशाश्वत की गुत्थी को सुलझाने के लिए यह आवश्यक है कि हम यह । समझें कि प्रत्येक आत्मा एक जीव द्रव्य है, प्रत्येक पदगल परमाण एक पदगल द्रव्य है। ऐसा कथन करते समय जीव एवं पुद्गल को और अधिक सूक्ष्मता से समझते रहने की आवश्यकता तब तक बनी रहेगी जब तक शाश्वत जीव द्रव्य एवं शाश्वत पुद्गल द्रव्य दृष्टि में न जायें। जब तक विनाशी जीव एवं विनाशी पुद्गल ही नजर आते रहेंगे तब तक यह मान लेना है कि न तो जीव द्रव्य समझ में आया है और न पुद्गल द्रव्य समझ में आया है।