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स्मृतियों के वातायन से
पदार्थों के संयोग से उत्पन्न होने वाली प्रतिक्रियाएँ एवं अनुभूतियाँ उनके अभाव में विद्युत कम्पनों से भी पैदा की जा सकती हैं। परामनोवैज्ञानिकों की भी यही मान्यता है कि सुख-दुःख की अनुभूतियाँ जैव विद्युत तरंगों पर निर्भर करती हैं।
पिछले लगभग अस्सी वर्षों से वैज्ञानिकों को स्पष्ट रूप से यह ज्ञात था कि जीवित कोशिकाओं से एक प्रकार का अति क्षीण प्रकाश उत्सर्जित होता है । रसियन वैज्ञानिक एलेक्जेण्डर गुरवत्स ने तीस के दशक में पहली बार यह पाया कि पौधे अल्प मात्रा में प्रकाश का उत्सर्जन करते हैं। 1950 में इस अति मंद प्रकाश को मापने के यंत्र बनाए गये। यह प्रकाश इतना मंद होता है कि उसकी मात्रा 10 किलोमीटर दूर राखी हुई मोमबत्ती के प्रकाश के बराबर है। प्रयोगों से पाया गया कि इस प्रकाश की तीव्रता एक वर्ग में सेंटीमीटर में कुछ फोटोन से लेकर कुछ हजार फोटोन प्रति सैकण्ड तक हो सकती है। वैज्ञानिकों ने पाया कि कोशिकाओं से . उत्सर्जित होने वाला यह प्रकाश सूर्यप्रकाश से भिन्न प्रकृति का है, उन्होंने कोशिका से आने वाले फोटोन को जैव फोटोन नाम दिया।
1979 में जर्मनी के डॉ. फ्रिट्ज अलबर्ट पोप ने सिद्ध किया कि कोशिकाएं जो जैव प्रकाश उत्सर्जित करती हैं वह कोहरेन्ट है, उनके गुण लेकर किरणों से मिलते जुलते हैं। इसके कारण एक जीवित कोशिका विद्युत की सुपर संचालक होती है और अन्यतम अपव्यय के साथ सौर ऊर्जा और अन्य ऊर्जा का उपयोग करती है। वैज्ञानिकों ने पाया कि जीवित शरीर में एक विद्युत चुम्बकीय क्षेत्र व्याप्त रहता है जो जैव फोटोन से बना होता है। ये जैव फोटोन विभिन्न आवृत्ति वाले होते हैं और इनकी उपस्थिति इन्फ्रारेड से अल्ट्रा-वायलेट रेन्ज तक देखी गई है। परन्तु वैज्ञानिकों का मानना है कि जैव फोटोन का स्पैक्ट्रम इससे भी अधिक विस्तृत है।
जैव फोटोन की सहायता से हर कोशिका में प्रति सैकण्ड लाखों क्रियाएं संभव होती हैं । अणु शरीर की विभिन्न क्रिया में भाग तो लेते हैं परन्तु उनका अपना कोई ज्ञान नहीं होता, उनकी क्रिया जैव फोटोन द्वारा निर्देशित होती है। जैव फोटोन ही हर क्रिया के लिए सही मात्रा में, सही जगह और सही समय पर ऊर्जा उपलब्ध कराते हैं। जैव फोटोन की कार्य पद्धति रेजोनेन्स सिद्धान्त पर आधारित है। एक फोटोन में यह शक्ति होती है कि वह परमाणु के नाभिक की परिक्रमा कर रहे इलेक्ट्रान को अपनी कक्षा से अलग कर दे। कोशिका में स्थित नाभिक और मिटोकोन्ड्रिया से अलग हुए इलेक्ट्रान्स को निर्देशित किया जाता है कि वे अन्यत्र चल रह रासायनिक क्रिया में भाग लें। एक जैव फोटोन एक कोशिका में 100 करोड़ क्रियाएं सम्पन्न कर सकता है। कोई भी फोटोन शरीर में कहीं भी अन्यत्र आवश्यकतानुसार रसायन क्रिया को सम्पादित कर सकता है। इस प्रकार जैव फोटोन शरीर की सम्पूर्ण क्रियाएं नियंत्रित करते हैं।
जैव फोटोन द्वारा जीवात्मा और वातावरण के बीच भी संप्रेषण संभव है। इस प्रकार जीव इस विश्व में अकेला और अलग नहीं है बल्कि वह इस अखिल ब्रह्माण्ड का एक हिस्सा है। कोई एक जीव केवल अपने लिए ही नहीं । वर लोक के अन्य जीवों के लिए भी अपनी भूमिका का निर्वहन करता है। यह सब सूक्ष्म स्तर पर होता है, जीव को इसका ज्ञान नहीं होता। जैव फोटोन का उत्सर्जन जीवाणु से लेकर मनुष्य तक सभी प्राणियों में पाया गया है।
5. कार्मण शरीर का वैज्ञानिक स्वरूप और कर्म बंध
तेजस शरीर को विद्युत रूप माना गया है। वस्तुतः यह विद्युत चुम्बकीय है। कार्मण शरीर और तैजस शरीर हमेशा साथ रहते हैं, अलग नहीं किए जा सकते। इसलिए कार्मण शरीर भी विद्युत चुम्बकीय है। कार्मण शरीर ! कार्मण वर्गणाओं से बनता है। इस प्रकार कार्मण वर्गणाएं विद्युत चुम्बकीय तरंगे सिद्ध होती हैं, जो समस्त लोक में व्याप्त हैं। वैज्ञानिकों द्वारा खोजा गया जैव प्रकाश विद्युत चुम्बकीय कार्मण शरीर की ही परिणति है । कार्मण