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________________ 341 . 9. गति ठा. 18. सूक्ष्मत्व 10. अगुरूलघुत्व ठा. 19. स्थूलत्व ! 11-12 एकत्व-प्रक्त्व उ. . 20. संयोग 21. संख्या इससे प्रकट होता है कि यदि रूपादि चार परिणामों को लक्षण के रूप में माना जाय, तो पुद्गल स्कंधों के 17 । परिणाम प्राप्त होते हैं। यहाँ भी हम देखते हैं कि विभिन्न स्रोतों में भिन्न-भिन्न नाम तथा संख्या है। ऐसे | व्यावहारिक प्रकरणों का समेकीकरण होना चाहिए। इनका शास्त्रीय एवं वैज्ञानिक विशद वर्णन अनेक लेखकों ने किया है। इससे इन विषयों पर वैज्ञानिक प्रगति की जानकारी मिलती है। उदाहरणार्थ, पुद्गलों के गति-परिणाम को ही लें। अकलंक ने 10 प्रकार की गति क्रिया बताई है जिसमें प्रक्षेपण, संघट्टन, गुरुत्व, अविरत गति, लघु | गति एवं संयोग गति आदि समाहित हैं। ये सभी स्थानांतरण गतियाँ हैं। भगवती में कंपन, अंतःप्रवेशन एवं | परिणमन गति भी बताई है। परिस्पंद और परिणाम शब्द स्थानांतर और कंपन गति के निरूपक हैं। इन गतियों के अतिरिक्त, विज्ञान ने चक्रण एवं घूर्णन गतियों का भी उल्लेख किया है जो विभिन्न परमाणविक एवं | रासायनिक क्रियाओं के सम्पन्न होने में महत्त्वपूर्णभाग लेती हैं। इन दोनों ही गतियों के नाम शास्त्रों में प्रायः नहीं हैं। ! हमारे जीवन में ये दोनों ही घटक बड़े उपकारी हैं। वे हमारे शरीर, वचन, मन, इन्द्रियों एवं श्वासोच्छ्वासों के जनक हैं। ये सुख, दुःख, जीवन एवं मरण में भी सहायक हैं। कर्म भी पौद्गलिक होते है, अतः जीव-कर्म के बंधन एवं वियोजन में भी ये हमारे उपकारी हैं। वस्तुतः हमारा सांसारिक जीवन इनके बिना नहीं चल सकता जैसा सारणी 1,2,3 से प्रकट होता है। वैज्ञानिक अन्वेषणों का उपयोग प्रायः जैन वैज्ञानिक यह मानते हैं कि जैनों का वैज्ञानिक विवरण मुख्यतः गुणात्मक है। परमाणु घटकों के , अन्वेषण, क्वांटम सिद्धांत, सापेक्षता तथा विद्युत एवं विद्युत-चुंबकीय क्षेत्र का ज्ञान एवं सूक्ष्म कणों की तरंकणी व्याख्या ने हमें अपने सिद्धांतों को सूक्ष्मता से विवेचित करने की प्रेरणा दी है। इस प्रगति के पूर्व हम अपने स्थूल एवं सूक्ष्म वर्णनों से संतुष्ट थे। अब व्यावहार परमाणु में अनेक घटक अन्वेषित हुए हैं जिनके नाम हमारे शास्त्रों में नहीं हैं, पर अब यह माना जाता है कि हमारा आदर्श परमाणु अन्वेषित नवीन कणों से सूक्ष्मतर है। विज्ञान अभी तक अष्टस्पर्शी पुद्गलों तक ही पहुँचा है, चतुष्पर्शी तक नहीं। सामान्य या व्यवहार परमाणु द्वि-स्पी हैं, अतः उसे भारहीन माना जाता है। भारहीन कण में भार कैसे सम्भव है, इसके लिये एक विद्वान ने मृदु और कठोर स्पर्श की परिभाषा को आकर्षण और विकर्षण के रूप में परिवर्तित करने का सुझाव दिया है। महेन्द्र मुनि का मत ! है कि जब चतुष्पर्शी पुद्गल अष्टस्पर्शी पुद्गल में परिणत होते है, तब द्रव्यमान सहज ही उत्पन्न होता है। , वैज्ञानिक परिमाण के सभी घटक अष्टस्पर्शी पुद्गल में परिणत होता है, तब द्रव्यमान सहज ही उत्पन्न होता है।। वैज्ञानिक परिमाण के सभी घटक अष्टस्पर्शी है, फलतः इनके साथ-साथ रहने में विभिन्न बल काम करते हैं। । इन बलों का प्रत्यक्ष उल्लेख हमारे शास्त्रों में नहीं हैं, पर हम अपनी कुछ मान्यताओं को इसके अनुरूप मान सकते । हैं। इसी प्रकार कर्म कणों की सूक्ष्मता को देखते हुए हमें वैज्ञानिक सूक्ष्म कणों में कार्मोन कण जोड़ना चाहिए और , कार्यकारी मूलभूत चार बलों में कर्म बल भी जोड़ना चाहिए जहाँ आत्मा और कार्मोन कणों के बीच कषाय रूपी बोसोन (सरेस के समान) काम करते माने जा सकते हैं। मरडिया ने इन कषाय कणों को पेशियानों और ए-पेशियानो की
SR No.012084
Book TitleShekharchandra Jain Abhinandan Granth Smrutiyo ke Vatayan Se
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShekharchandra Jain Abhinandan Samiti
PublisherShekharchandra Jain Abhinandan Samiti
Publication Year2007
Total Pages580
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size21 MB
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