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________________ PICARRIHAGRAM BAD 326 SONAGAR ONLINE अनेकांत से ही लोक कल्याण 'उत्पाद-व्यय-प्रौव्य युक्तं सत' मोतीलाल जैन (सागर) किसी भी वस्तु पदार्थ अथवा द्रव्य के रूप, रस, गंध व वर्ण के सन्दर्भ में विभिन्न तरह से विचारना ही अनेकांत वाद है। अनेकांत-वाद कहे या अनेकांत-दर्शन, इससे कोई अंतर नहीं आता है। वस्तु के समग्र आकार और समस्त गुण-धर्मों आदि को विस्तार से जानने और समझने के लिये, उस वस्तु के गुण-धर्मों आदि का भिन्न-भिन्न प्रकार से विचार करना ही जैन-दर्शन की पद्धति है। पूरी तरह सभी प्रकार से विचार किए बिना किसी भी पदार्थ के विषय में निश्चित रूप से कुछ कहना कठिन रहता है। हम जल को ही लें। कुएँ का जल गरमी में ठंडा मालूम होता है, वही जल ठंड में ऊबा हुआ लगता है। आग पर रख देने से वही जल खौलने लगता है। शीतल जलसे प्यास शांत । हो जाती है और खौलते जल से फफोले पड़ जाते हैं। आग पर ठंडा जल डाला जाये अथवा ! खौलता हुआ भी डाल दिया जावे तो दोनों दशाओं में आग बुझ जावेगी। अब विचार किए बिना जिसने जल की जो अवस्था देखी हो, उसे मात्र उसी रूप सिद्धांत में निश्चय कर लेना ही तो एकांत-वाद कहा जाएगा। इस तरह एकान्तवाद में हठ होता है और अपने ही अधूरे अनुभव को पूर्ण मानने का असत्य आग्रह होता है। असत्यता और हठ-धर्मिता ये दोनों एकान्त-दर्शन की देन हैं। __प्रत्येक द्रव्य वस्तु अथवा पदार्थ में जो बदलाव होते रहते हैं, टूटन होती रहती है, बिखराव होता रहता है और उसके आकार बदलते रहते हैं, तथा रंग रूप गंध एवं स्वाद में बदलाव होता रहता है, सो उन सब होने वाले परिवर्तनों के कारणों और शक्तियों पर विचार करना और फिर निर्णय करना इसे ही अनेकांत-दर्शन कहा गया है। इस तरह पूरी वस्तु के निर्णय करने में भ्रम शेष नहीं रह पाते हैं और निर्णय सत्य रूप से हो जाता है। अन्य दूसरों द्वारा बताए गए अनुभवों पर भी हमें शांति से सोचने विचारने में मदद मिलती है। हमारी अनेकों कठिनाईयाँ इस तरह सहज ही हल हो जाती हैं और हम नईनई बातों को सोचते रहने के योग्य बने रहते हैं। हमारा चित्त, मन और बुद्धि सहज बने रहते हैं। स्वयं की अनुभूत बात को पूरी की पूरी लिखना अथवा कहना साधारण काम नहीं है। ।
SR No.012084
Book TitleShekharchandra Jain Abhinandan Granth Smrutiyo ke Vatayan Se
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShekharchandra Jain Abhinandan Samiti
PublisherShekharchandra Jain Abhinandan Samiti
Publication Year2007
Total Pages580
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size21 MB
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