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________________ PHONETITHIMITRACK 147 स्मृतियों के वातायन से जाग्रत समाज का आदर्श बिम्ब विद्वानों में देखा जा । सकता है। कतिपय मनीषी विद्वानों ने श्रमण संस्कृति के | आचार्यों ने विद्या और विद्वानों की प्रशंसा करते हुए आदर्श मानदण्डों और आर्ष-मार्ग के संरक्षण तथा संवर्धन | रक्षण तथा संवर्धन | कहा है किका अभिनव उपक्रम किया है। ऐसे मनीषियों में हमारे वैपश्चित्यं हि जीवाना-माजीवितमनिन्दितम्। विद्वान डॉ. शेखरचन्द्र जैन भी हैं जिन्होंने सरस्वती माता अपवर्गेऽपि मार्गोऽय-मदः क्षीरमिवौषधम्॥ की सेवा में अपना अहर्निश समय व्यतीत किया है। विद्वत्ता, प्राणियों के लिए जीवन पर्यन्त प्रशंसनीय होती समाज के श्रेष्ठी एवं विद्वानों ने ऐसे प्रसिद्ध विद्वान के | है। जिस प्रकार दूध पौष्टिक होने के साथ-साथ औषधि सम्मान में अभिनंदन ग्रंथ प्रकाशित करने का निर्णय लेकर | भी है, उसी प्रकार विद्वत्ता भी लौकिक प्रयोजन के लिए वास्तव में प्रशंसात्मक कार्य किया है जो कि वात्सल्य अंग | साधक होती हुई भी मोक्ष का कारण होती है। का परिचायक भी है। स्वामी समन्तभद्राचार्य ने कहा है- | डॉ. शेखरचन्द्र जी विगत कई वर्षों से पूज्य माताजी के स्वयूथ्यान् प्रतिसद्भाव-सनाथापेतकैतवः। | चरण सानिध्य में आते रहे हैं तथा देव-शास्त्र-गुरु के प्रतिपत्तिर्यथायोग्यं, वात्सल्यमभिलप्यते॥ प्रति उनकी गहरी श्रद्धा है। उनके द्वारा प्रदत्त जिनवाणी अर्थात् अपने सहधर्मियों के प्रति जो हमेशा छल- | सेवा व ज्ञानदान भावी पीढ़ी के लिए मार्गदर्शक बनेगा। कपट रहित होकर सद्भावना रखते हुए प्रीति करते हैं | विद्वानों में प्रायः ज्ञान के साथ-साथ चारित्र का अभाव और यथायोग्य उनके प्रति विनयभक्ति आदि भी करते हैं, | देखा जाता है किन्तु मेरी दृष्टि में सच्चे गुरुओं की छत्रछाया वे वात्सल्य अंग के पालक होते हैं। प्राप्त करनेवाले विद्वान का जीवन तभी सार्थक है, जब यह सम्मान किसी व्यक्ति विशेष का सम्मान नहीं है, | उसमें कम से कम अणव्रत पालन की क्षमता दष्टिगत हो। प्रत्युत जिनवाणी के प्रति समादर भाव का प्रतीक है। शेखरजी | डॉ. शेखरचन्द्रजी में भी मैंने सात्विकता तो देखी ही है इसी प्रकार सदैव देव-शास्त्र-गुरु के प्रति समर्पित बने | अतः वे अब आगे देशसंयम ग्रहण कर परम्परा से सकल रहें एवं आर्षमार्ग की सच्ची सेवा करते हुए अपनी विद्वत्ता | संयम धारण कर अपने मोक्षमार्ग को साकार करें यही को वृद्धिंगत करते हुए धर्मप्रभावना के साथ-साथ | प्रेरणा है तथा धर्मरक्षा एवं प्रभावना के कार्यों में आप आत्मकल्याण भी करें यही उनके लिए मेरा बहुत-बहुत | सतत संलग्न रहते हुए यशस्वी हों, यही मेरा मंगल मंगल आशीर्वाद है। आशीर्वाद है। अभिनंदन ग्रंथ के सम्पादकों को मेरा आशीर्वाद प्रज्ञाश्रमणी आर्यिका चन्दनामती गणिनी आर्यिका ज्ञानमती माताजी
SR No.012084
Book TitleShekharchandra Jain Abhinandan Granth Smrutiyo ke Vatayan Se
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShekharchandra Jain Abhinandan Samiti
PublisherShekharchandra Jain Abhinandan Samiti
Publication Year2007
Total Pages580
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size21 MB
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