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और 512
___48 मिन्नों का लेखन
अत्यन्त प्राचीन काल से ही हिन्दू लोग भिन्नों को उसी प्रकार से लिखते आ रहे हैं जैसे आजकल लिखते हैं, परन्तु पहले समय में अंश और हर को विभाजित करने वाली रेखा का व्यवहार नहीं करते थे, तिलोय पण्णत्ती में 19/24 को 2 और त्रिलोक सार में 96 को लिखा है। - आंशिक भिन्न
बड़ी बड़ी भिन्नों की अभिव्यक्त करने में अनेक कठिनाईयाँ आती थी, क्योंकि पहले संकेतों की कमी थी, . परन्तु सूर्य-प्रज्ञप्ति में इस कठिनाई का समाधान भलीभाँति दिया हुआ है, उसमें बड़ी भिन्न को दो या दो से [ अधिक छोटी भिन्नों के योग के रूप में प्रकट किया है।
यथा
8192
525167 (9-11)= 47179 50 + 6061 47263 20 + 549 = 86-55 + 64
18 - 548 = 2+861 +643 51830= 29 1
रूपांशक भिन्न
महावीराचार्य ने 'गणितसार संग्रह' में 'इकाई भिन्न' का उल्लेख किया है। यह रूपांशक ऐसी भिन्न को कहते हैं जिसका अंश 1 हो। इस भिन्न को 'रूपांशक राशि' के नाम से भी पुकारते हैं। महावीराचार्य ने कई नियम दिये हैं जिनके द्वारा किसी रूपांशक भिन्न को कई रूपांशक भिन्नों में विभक्त किया जा सकता है। इसका उल्लेख करने वाले महावीराचार्य ही सबसे पहले जैन गणितज्ञ थे। डॉ. ब्रजमोहन अपने 'गणित के इतिहास' में लिखते हैं कि अन्य किसी भारतीय गणितज्ञ ने इस विषय को स्पर्श भी नहीं किया है।'
(1) 1 को n संख्या के रूपांशक भिन्नों के योग में विभक्त करना-8
इसके लिये नियम इस प्रकार हैं। 1 से शुरू करके 1/3, से गुणा करते जाओ और इस प्रकार n संख्यायें लिख डालो।
11111 1 1
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