________________
1302
सालमातियों बताना | अंग्रेजी में शोध एवं अन्वेषण हेतु किया गया है। ये ग्रंथ कर्म आगम ग्रंथों के आधार रूप है जिनमें जैन भूगोल, ! जैन गणितीय ज्योतिष एवं जैन खगोल शास्त्र का गणितीय विवरण प्राप्त है। इन सूत्रों से गणित एवं गणितीय
ज्योतिष, भूगोल तथा खगोल का इतिहास बनाने में विश्व के अनेक विद्वानों का सहयोग रहा है। अनेक शोध एवं अन्वेषण पूर्ण लेख विश्व की प्रामाणिक शोध पत्रिकाओं में निकले हैं तथा इस विषय को लेकर ग्रंथ भी प्रकाशित हुए हैं। जापान के प्रोफेसर तकाओ हयाशी तथा यूहियो उकाशी एवं भारत के प्रोफेसर आर.सी. गुप्ता के नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। उनके कार्यों को आगे बढ़ाकर ले जाने का दायित्व अब श्रुत संवर्द्धकों का है। ____संवर्द्धन का चौथा बिन्दु मात्र कर्म सिद्धान्त का तात्त्विक निर्वचन ही नहीं है, अपितु उसे आधुनिक विज्ञान से जोड़ना भी है। मात्र आगम का आधार लेकर जो निर्वचन का प्रयास होता रहा है, उसमें सांव्यवहारिक प्रत्यक्ष, अर्थात् विज्ञान द्वारा विकसित ज्ञान का भी आधार लेना आवश्यक है। वह आधार भी मात्र तुलनात्मक अध्ययन नहीं हो वरन् अपनाई गई अन्वेषण एवं गणितीय पद्धति का समावेशकर प्रतिकृति को विकसित करने का ध्येय भी आवश्यक है। यथा, हम स्याबाद में आइंस्टाइन के सापेक्षता की तुलना की बात कर जाते हैं किन्तु उन्होंने उसमें किस शैली में गणित का प्रयोग कर अणु में छिपी शक्ति को उद्घाटित किया इस ओर ध्यान नहीं देते हैं। सार्थकता के लिए गणितीय प्रमाण अपरिहार्य हो जाते हैं, गणितीय अभिव्यक्ति, वाक्यांश तथा समीकरण वा असमीकरण और उसके हल के बिना कदापि प्रयासों में श्रुत संवर्द्धन मानना भारी भूल है। जैसे स्कन्ध की नाभि तोड़ने से नाभिकीयशक्ति (nuclear energy) गणितीय समीकरणों द्वारा सैद्धान्तिक रूपसे दृष्ट हो जाती है। उसी प्रकार करण लब्धि में अधः प्रवृत्त करण, अपूर्व करण व अनिवृत्ति करण के गणित द्वारा चित्रित विशुद्धिरूप धाराओं में निहित परिणाम मिथ्यात्व के द्रव्य को तीन खंडों में विभाजित कर उनके द्रव्य वा शक्ति को गणित की सामग्री बना देते हैं। ऐसा स्पष्टीकरण छन छन कर विद्वानों की वा लेखकों की विभिन्न प्रकार से तैयार टोलियां । लोकप्रिय वचनों, प्रवचनों द्वारा श्रुत संवर्द्धन के कार्य को नया रूप दे सकती हैं तथा राजनीति एवं लोक नीति में । अहिंसा के महत्व को अत्यधिक निखार व उजागर कर सकती हैं।
इसी प्रकार कर्म सिद्धान्त के आगम प्रमाण द्वारा हम बंध उदय, सत्व को लेकर गुण स्थानों व मार्गणा स्थानों तथा भावादि विषयों की चर्चाएं कर लेते हैं पर ऐसे ज्ञान का उद्गम (origination) ज्ञान के किस प्रकार के स्रोत से विकसित होता चला गया कि हजारों पृष्ठों में कर्म सिद्धान्त के अनेक पक्षों का भलीभांति विवरण चलता गया। इस ओर आधुनिक वैज्ञानिक शैलियों के इतिहास को नहीं देखना चाहते हैं न ही उन्हें उपयोग में लाने का प्रयास कर रहे हैं। जैसे एलोपैथी में अनेक प्रकार के प्राचीन ज्ञान-यूनानी, आयुर्वेदिक आदिके ज्ञान को लेकर प्रायोगिक रूप से उन्नत करते हुए आज विश्वास लोक में प्रचलित किया गया, उसी प्रकार का प्रयास कर्म सिद्धान्त के लिए भी अपेक्षित है, क्योंकि इसमें कर्म फल व स्थिति के रूप को परिणामों पर, जीव के अध्यवसाय | व अनध्यवसाय तथा योग प्रयोग आदि पर स्पष्ट किया गया है।
कर्म सिद्धान्त लोक व्यवहार को उत्कृष्ट बनाने हेतु जीव के विशुद्धिरूप परिणामों का मार्ग कर्म के गणितीय रूपों से विवेचित करता है और संक्लेश रूप परिणामों से बच निकलने के रहस्य को गणितीय विधि द्वारा स्पष्ट करता है। साता वेदनीय और असाता वेदनीय कर्म प्रकृतियों के उद्गम को सुझाता है और शुभ वा अशुभ के भंग की संधि में विशुद्धि का ग्राफ बनाता चलता है। कर्म सिद्धान्त के दो रूप हैं- एक तो आधारभूत तत्त्वों का परिचय, दूसरा विकसित रूप सिद्धान्तों का परिचय (principles and theory) पर ये रूप विवेचित होते हैं। . जैसे रिलेटिविटी थ्योरी, क्वाटम थ्योरी व सेट थ्योरी आधारभूत सिद्धान्तों (principles) पर विकसित की गयी ।