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मतियों के वातायनमा ।
जैन आगम ग्रंथों में विज्ञान
प्रो. एल.सी. जैन (एम.एस. सी., डी.एच.बी.) आधुनिक युग वैज्ञानिक संचार एवं जैव प्रोद्यौगिकी का प्रतीक युग मान लिया गया है। आणविक शक्ति और नाभिकीय शक्ति के द्वारा मानव जीवन एक बहुत बड़ा मोड़ ले चुका है। जिस चन्द्रमा को पुराणों में देवतुल्य माना जाता था, उस पर अणुशक्ति एवं अनेक वैज्ञानिक अनुसंधानों के द्वारा मानव अपने कदम रख चुका है। पृथ्वी और चन्द्रमा के बीच अनेक प्रकार के संबंध स्थापित कर वैज्ञानिक अन्तरिक्ष विज्ञान को शीर्ष तक ले गये हैं। इसी प्रकार डी.एन.ए ने जीवन के अनेक रहस्यों को खोलकर अनेक असम्भव माने जाने वाले चमत्कारी कार्यों को कर दिखाया है।
सुविदित है कि प्रायः ढाई हजार वर्ष पूर्व विश्व के अनेक सभ्यता केन्द्रों में अकस्मात् एक क्रान्ति आई, जिसे वैज्ञानिक क्रान्ति अथवा वैज्ञानिक जागृति कहा जा सकता है। । आचार्य पुष्पदंत एवं भूतबलि द्वारा सर्वप्रथम लिपिबद्ध ग्रंथ षट्खण्डागम में गुणस्थान एवं । मार्गणाओं के माध्यम से जीव तत्त्व की विशद चर्चा है, जिसमें सम्पूर्ण जगत के जीवों के । गुण एवं मार्गणा स्थानों की जानकारी देकर उनकी रक्षा का उपदेश देकर अहिंसा के माध्यम से पर्यावरण को पूर्ण सुरक्षित रखने का उपाय बताया गया है। इसी प्रकार जलगालन आदि करके, जलकायिक आदि जीवों की रक्षा द्वारा जलप्रदूषण से बचने की चर्चा लगभग २००० वर्ष पूर्व की जा चुकी है। __ आचार्य गुणधरने पहली सदी में 'कषाय पाहुड़' की रचना की। जिसकी जय धवला टीका १६ भागों में मथुरा से प्रकाशित है। इसमें मोहकर्म के निमित्त से होने वाली अवस्थाओं का विशेष वर्णन है। जो विवेकी अपने विभाव परिणाम, राग, द्वेष, मोह, क्रोधादि कषायों पर नियंत्रण कर लेता है, हो सकता है कि उसकी ग्रंथियों से इस तरह के हारमोन्स सवित होने लगें कि वह सहज ही शौर्य, बल, पराक्रम एवं परम स्वास्थ्य को प्राप्त कर ले। कारण, कर्म के क्षयोपशम आदि से जीव पुण्यवान् हो जाता है और पुण्य की प्राप्ति होते ही इस तरह के गुणों की प्राप्ति स्वाभाविक है। विशुद्धि रूप परिणामों का । कार्य इससे बहुत आगे बढ़कर है।
आचार्य नेमिचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्ति ने भी 'लब्धिसार' एवं 'क्षपणासार' जैसे महान ग्रंथों का सृजन किया। लब्धिसार में सम्यक्दर्शन एवं उसकी प्राप्ति में सहायक पाँच ।