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________________ 1286] मायो का जहाजों के पैंदों के तख्तों को जोड़ने के लिए लोहे को काम में नहीं लेना चाहिए, क्योंकि सम्भव है समुद्र की चट्टानों में कही चुम्बक हो तो वह स्वभावतः लोहे को अपनी ओर खींचेगा, जिससे जहाजों के लिए खतरा है। । परमाणु का ज्ञान भी भारतीयों को हजारों वर्ष पूर्ण हो गया था। उन्होंने परमाणु का आकार 35X2-62 इंच से भी कम माना था। चुम्बकीय सुई बनाना भी भारतीय जानते थे। जब भारतीय व्यापारी जावा-सुमात्रा आदि द्वीपों ! में गये तो साथ में कुतुबनुमा सुई भी ले गये। उसे 'मत्स्य यन्त्र' कहा जाता है। वह सदा तेल के पात्र में रखा जाता । था। उत्तर दिशा की ओर ही सुई ठहरती थी। पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण शक्ति का ज्ञान भी आर्यभट्ट, ब्रह्मगुप्त । और भास्कराचार्य आदि गणितज्ञों को था। (ब्रह्माण्ड जीवन और विज्ञान) आर्कमिडीस के बहुत वर्ष पहले अभय | कुमार ने 'प्लावन सूत्र' की खोज की थी। उपर्युक्त प्राचीन भारतीय ज्ञान विज्ञान तथा उसके साहित्य एवं उपकरण विदेशी आक्रान्ता, लुटेरे, शासकों के कारण तथा भारत की दीर्घ परतंत्रता के कारण कुछ नष्ट हुए तो कुछ विदेश में ले गये तो कुछ धीरे-धीरे उसके अध्ययन-अध्यापन, प्रयोगीकरण का लोप होता गया। उसके कारण अभी भी जो प्राचीन ग्रन्थों में ज्ञानविज्ञानादि लिपिबद्ध हैं उनका रहस्य न समझ पाते हैं न प्रयोग में ला पाते हैं। इसलिए उसे काल्पनिक, अतिरंजित या असत्य मान लेते हैं। भारतीयों की मानसिक परतन्त्रता, हीनभाव, अकर्मण्यता, पाश्चात्य की नकल भी उत्तरदायी है। भारत का प्राचीन ज्ञान-विज्ञान इतना सूक्ष्म, व्यापक, विशाल है कि केवल आधुनिक विज्ञान के सिद्धान्त तथा यन्त्र से उसे जानना कठिन या असम्भव हो जाता है। अन्य पक्ष में आधुनिक विज्ञान के विकास के साथ-साथ भारतीय प्राचीन विज्ञान आधुनिक विज्ञान से श्रेष्ठ, श्रेष्ठतर, श्रेष्ठतम सिद्ध होता जा रहा है। प्रकारान्तर में प्राचीन भारतीय विज्ञान केवल कपोल कल्पित है यह धारणा भी नष्ट होती जा रही है। यथा- योग (ध्यान), अनेकान्त सिद्धान्त / सापेक्ष सिद्धान्त, शाकाहार, कर्मसिद्धान्त आदि। इस दिशा में भारतीयों को तथा । विशेषतः जैनियों को अधिक पुरूषार्थ करके भारतीय विज्ञान को प्रायोगिक सिद्ध करके स्व-पर-विश्व कल्याण । में योगदान करना चाहिए। इस दिशा में मैं अनेक वर्षों से प्रयासरत हूँ।
SR No.012084
Book TitleShekharchandra Jain Abhinandan Granth Smrutiyo ke Vatayan Se
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShekharchandra Jain Abhinandan Samiti
PublisherShekharchandra Jain Abhinandan Samiti
Publication Year2007
Total Pages580
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size21 MB
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