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BOLAIMER
12661 ! भी कई प्रकार के होते हैं यथा आकर्षण, सम्मोहन, स्तंभन, वशीकरण, उच्चाटन, मारण आदि। । मंत्र विन्यास के आधार पर मंत्र के असंख्य भेद होते हैं, जो श्रावक को उसकी असाता कर्मोदय, शक्ति,
एकाग्रता एवं रुचि के अनुसार फल देते हैं, जिनका प्रयोग साधक अपनी भावनानुसार करता है। मंत्र विद्या को सिद्ध करने के अलग साधन आचार्यों ने वर्णित किए हैं, परन्तु वर्तमान में चित्त की अस्थिरता एवं अशुद्धि से मंत्र ! साधना का निषेध किया गया है। हीन संहनन, भक्ष्याभक्ष्य का अविवेक, मंदबुद्धि, हीन शक्ति होने से साधक मंत्र
ऊर्जा को सहन नहीं कर पाता है जिससे मानसिक विकृति भी होते देखी गयी है। ___मंत्र में ऊर्जा का अक्षय कोष होता है जो साधक की क्रियाविधि, संयमसाधना, एकाग्रता, मन, वचन, काय
एवं द्रव्य से काल भाव की शुद्धि पर निर्भर करता हैं। मंत्र ऊर्जा से आत्मविश्वास, आत्मशक्ति बढ़ने से अशुभ । से निवृत्ति की शक्ति, संयम साधना करने का संबल, विकारी परिणामों को दूर करने का भाव जागृत होता है।
जिससे जीवन शैली परिमार्जित होने लगती है। पुण्यासव बढ़ने से धार्मिक कार्यों में रुचि बढ़ने लगती है जिसके । फलस्वरुप संसार के दुःखों से छुटकारा मिलने लगता है। ____ जिस प्रकार अलग-अलग व्यक्ति का फोन नम्बर अलग-अलग होता है, उसी प्रकार प्रत्येक मंत्र की ऊर्जा
भी भिन्न होती है जो उसके आराध्य तक संप्रेषित होती है। ____ यदि फोन नम्बर में एक भी अंक गलत हो जाये तो संबंधित व्यक्ति से बात नहीं हो पाती है उसी प्रकार मंत्र का शुद्ध उच्चारण होने पर साधक उसकी ऊर्जा से अर्जित नहीं हो पाता है। इसीलिए अनुष्ठान में मंत्र जाप करने के लिए पात्रता एवं योग्यता अनिवार्य है।
(1) अभक्ष्य एवं रात्रि भोजन का त्याग। (2) हिंसक पदार्थो का पूर्णता त्याग। (3) शुद्ध भोजन पूर्वक एकाशन। (4) ब्रह्मचर्य का पालन। (5) कषाय का बुद्धिपूर्वक त्याग करने का अभ्यास। जिस प्रकार रोग की तीव्रता में औषधि उसके आवेग को कम करती है और पत्थ्यानुसार प्रयोग करने पर रोग से छुटकारा दिला देती है उसी प्रकार मंत्र भी साधक के असाता एवं अशुभ की तीव्रता को कम करके विधि अनुसार आराधन करने पर उससे छुटकारा भी दिला देता है।
जैसे आँखों की बीमारी विटामिन ए से, त्वचा की बीमारी विटामि डी से बुखारादि औषधि लेने से शांत हो जाते हैं अर्थात् शरीर में विकृति उत्पन्न करने वाले केन्द्रों को नियंत्रित करते ही विकार दूर हो जाता है। साधक यह नियंत्रण मंत्र साधना द्वारा कर लेता है। विवेक एवं संयमपूर्वक मंत्र साधना से विष निर्विष होना, कुष्ठ रोग दूर होना, धूल से पाषाण स्वर्ण का होना आदि कई उदाहरण हमारे सामने हैं। इसी प्रकार क्रोध का बिन्दु नियंत्रित करते ही क्रोध शांत हो जाता है, मादक द्रव्यों के पीने की आदत छूट जाती है, औषधीय रसायनों के प्रभाव से कर्म के विपाक को बदलने में सहायता मिलती है; जैसे मंदबुद्धि के प्रभाव को कम करने के लिए ब्राह्मी आदि बूटियों का सेवन, गर्मी की तीव्र वेदना में शीतल पेय पदार्थों का सेवन सहयोगी बनता है। इससे सभी के रोग दूर हों यह आवश्यक नहीं है, सभी रोगी डॉ. के द्वारा दी गयी औषधि से नीरोगिता को प्राप्त नहीं होते, पूर्व । कर्मानुसार ही उन्हें लाभ मिलता है। उसी प्रकार मंत्र साधना से भी साधक पूर्व कर्मानुसार एवं द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव के अनुसार ही लाभ प्राप्त करता है। साधक का रात्रि भोजन अभक्ष्य एवं नशीले पदार्थों का त्याग होने से ।