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________________ 1232 मालियानालायला । मुद्रित हो चुकी है। वर्षमान 12वीं शताब्दी के वर्धमान ने 'कातन्त्र विस्तर' नामक टीका लिखी। भावसेन त्रैविध ___ 13वीं शताब्दी में हुए परवादि-पर्वत-वज्रदण्ड शब्द ब्रह्म स्वरूप त्रिविद्याधिप सेनगणाग्रणी भावसेन त्रैविद्य ने कातन्त्र रूप माला नामक उपयोगी प्रयोगादि उदाहरणों से परिपूर्ण टीका लिखकर कातन्त्र के प्रचार में महनीय योगदान दिया है। उनकी यह कातन्त्र रूपमाला आर्यिका ज्ञानमती के हिन्दी अनुवाद के साथ दि. जैन त्रिलोक शो. सं., हस्तिनापुर से प्रकाशित हो चुकी है, सम्प्रति दिगम्बर साधु संतों में बहुप्रचारित है। संस्कृत भाषा के आरम्भिक अभ्यासियों के लिये यह टीका बहुपयोगी है। त्रिविक्रम त्रिलोचन की पंजिका पर 13वीं शताब्दी के पूर्व त्रिविक्रम ने 'उद्योत' नामक टीका लिखी है। 1340 से पूर्व महोदय द्वारा 'शब्दसिद्धि' 1340 में मेरूतुंग सूरि द्वारा बालबोधवृत्ति भी कातन्त्र पर लिखी गयी। जिनप्रभसूरि आचार्य जिनप्रभ सूरि ने सं. 1352 में 'कातन्त्र विभ्रम' नाम्नी टीका लिखी। जगद्धर भट्ट अनेक काव्य ग्रन्थों की टीकाकार जगद्धर भट्ट ने अपने पुत्र यशोधर को पढ़ाने हेतु सं. 1350 के आसपास "बालबोधिनी नामक' टीका लिखी है। राजानक शितिकण्ठ जगद्धर विरचित बालबोधिनी टीका पर राजानक शितिकण्ठ ने 15वीं शताब्दी में एक व्याख्या लिखी है। । सिद्ध हैम शब्दानुशासन कलिकाल सर्वज्ञ आचार्य हेमचन्द्र निःसन्देह अलौकिक प्रतिभा के धनी थे। अपने आश्रयदाता जयसिंह सिद्धराज के निमित्त इन्होंने सर्वांग पूर्ण व्याकरण ग्रन्थ का निर्माण किया। अतः दोनों नामों से संवलित यह ग्रन्थ 'सिद्ध हेम शब्दानुशासन' नाम से प्रसिद्ध है। इसका रचनाकाल विक्रम की 12वीं शताब्दी है। यह अति विशद एवम् सांगोपांग व्याकरण ग्रन्थ है। व्याकरण शास्त्र के पाँच अंग-सूत्रपाठ, धातुपाठ, उणादिपाठ, गणपाठ और लिंग हैं। इन पाँचों पर आचार्य हेमचन्द्र ने स्वोपज्ञ वृत्ति लिखी है। यह विराट् साहित्य सपादैकलक्ष श्लोक परिमाण में माना जाता है। इसमें आठ अध्याय हैं, इस प्रकार पाणिनि को अष्टायायी के समान यह भी अष्टाध्यायी है। सूत्रों की संख्या । 4685 और उणादि के 1006 सूत्रों को संयोजित करने से सकल सूत्रों की संख्या 5691 हो जाती है। आरम्भिक सात अध्यायों में संस्कृत व्याकरण तथा अन्तिम अध्याय के 1119 सूत्रों में प्राकृत एवम् अपभ्रंश का व्याकरण विवृत है। . इसकी रचना भी कातन्त्र के समान प्रकरणानुसारी है इसमें यथाक्रम संज्ञा, सन्धि, नाम, कारक, षत्व, णत्व, स्त्री प्रत्यय, समास, आख्यात, कृदन्त और तद्धित प्रकरण वर्णित हैं। हेमचन्द्र ने अपने सूत्रों को विशद और व्यापक बनाया है और अपने से प्राचीन जैन अजैन सभी व्याकरणों को समाविष्ट करने का प्रयास किया है। इसकी पूर्ति के लिये पृथक से वार्तिकों की आवश्यकता नहीं पड़ती। आचार्य हेमचन्द्र ने अपने व्याकरण के नियमों व प्रयोगों के उदाहरण स्वरूप स्वयं ही "द्वयाश्रय महाकाव्य"
SR No.012084
Book TitleShekharchandra Jain Abhinandan Granth Smrutiyo ke Vatayan Se
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShekharchandra Jain Abhinandan Samiti
PublisherShekharchandra Jain Abhinandan Samiti
Publication Year2007
Total Pages580
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size21 MB
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