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________________ क्लोनिंग तथा कर्म-सिद्धान्त 221 की क्षमता होती हैं जिससे वह भ्रूण में परिवर्तित हो जाता है। इस नयी निषेचित या फलित कोशिका के केन्द्र में गुणसूत्रों या क्रोमोसोम्स की संख्या तो 46 ही होती है, लेकिन इसमें आधे गुणसूत्र नर के तथा आधे मादा के होते हैं। इसके विपरीत क्लोनिंग द्वारा उत्पन्न नयी कोशिका में सारे के सारे गुणसूत्र किसी एक के ही होते हैं। स्तनधारी पशुओं के क्लोन पैदा करने की प्रक्रिया कुछ इस प्रकार से है। इसके लिए सर्वप्रथम मादा के एक स्वस्थ अण्डाणु को काम में लिया जाता है। इस अण्डाणु में से विशेष तकनीक द्वारा केन्द्रक को अलग कर दिया जाता है तथा इस केन्द्रक का या नाभिक विहीन कोशिका को एक सुरक्षित स्थान पर रख लिया जाता है। अब हमें जिस जीव का क्लोन तैयार करना है । (जिसे डोनर पेरेन्ट कहते हैं) उसकी त्वचा (Skin) में से कोशिका अलग कर ली जाती है। फिर इस कोशिका के केन्द्रक ( नाभिक) को बड़ी सावधानी पूर्वक अलग कर लिया जाता है । इस केन्द्रको में सुरक्षित रखी केन्द्रक विहीन कोशिका में प्रतिस्थापित कर दिया जाता है। इस प्रकार एक नयी कोशिका पैदा हो जाती है जिसका केन्द्रक डोनर - पेरेन्ट की कोशिका का केन्द्रक होता है। इस प्रकार इस नयी कोशिका में गुणसूत्र वे ही होते हैं जो डोनर - पेरेन्ट में होते हैं। यह नयी कोशिका द्विगुणन द्वारा भ्रूण परिवर्तित हो जाती है। इस भ्रूण को किसी भी मादा के गर्भाशय में स्थित कर दिया जाता है जहां वह सामान्य रूप से विकसित होने लगता हैं। इस प्रकार जो नवजात पैदा होता है उसमें गुणसूत्र वे ही होते हैं जो डोनर - पेरेन्ट के होते हैं, अतः इसकी शक्ल सूरत - हू-ब-हू डोनर पेरेन्ट जैसी ही होती हैं, यानि कि वह डोनर पेरेन्ट की कॉपी होता है। में इस प्रकार हम जिसकी प्रतिलिपि कॉपी (क्लोन) तैयार करना चाहते हैं उसका केन्द्रक मादा के अण्डाणु में प्रतिस्थापित करना होगा। यदि हम नर क्लोन तैयार करना चाहते हैं तो नर की कोशिका का केन्द्रक और मादा का क्लोन चाहते हैं तो मादा की कोशिका का केन्द्रक, किसी मादा के केन्द्रक - विहीन अण्डाणु (कोशिका) में प्रतिस्थापित करना होगा । 1 क्लोनिंग से उठे प्रश्न 'डॉली' के रूप में 'भेड़ का क्लोन' उपरोक्त विधि (तकनीक) द्वारा ही पैदा किया गया। लेकिन इस क्लोनिंग के सफल परीक्षण से कई दार्शनिक एवं धार्मिक कठिनाइयां सामने आई हैं जिनका स्पष्टीकरण अपेक्षित है- J (1) चूँकि क्लोन में आनुवंशिकी के हू-ब-हू वे सारे गुण होते हैं जो कि डोनर - पेरेन्ट के हैं, तो क्या क्लोन 1 डोनर का ही एक अंश है ? 1 (2) चूँकि क्लोनिंग द्वारा जीव पैदा होने की प्रक्रिया में नर तथा मादा दोनों का होना आवश्यक नहीं रह गया है, अतः बिना नर के भी स्तनधारी पैदा किया जा सकता है। तो क्या जैनधर्म में वर्णित गर्भजन्म की अवधारणा गलत है ? ( 3 ) क्या क्लोन भेड़ (डॉली) सम्मूर्च्छन जीव है ? ( 4 ) क्या प्रयोगशाला में भी मनुष्य पैदा किया जा सकेगा ? (5) जैन-धर्मानुसार जीव के शरीर की रचना आंगोपांग नाम कर्म के उदय से होती है, लेकिन क्लोनिंग की प्रक्रिया में शरीर की रचना हम मनचाहे ढंग से बना सकते हैं। हम जिस किसी जीव की शक्ल तैयार करना चाहें, वह कर सकते हैं। ऐसी स्थिति में जैनधर्म में वर्णित नामकर्म की स्थिति क्या होगी ? क्लोनिंग तथा कर्म - सिद्धान्त उपरोक्त प्रश्नों का हल प्राप्त करने के लिए हमें विषय का और अधिक विश्लेषण करना होगा तथा कर्म
SR No.012084
Book TitleShekharchandra Jain Abhinandan Granth Smrutiyo ke Vatayan Se
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShekharchandra Jain Abhinandan Samiti
PublisherShekharchandra Jain Abhinandan Samiti
Publication Year2007
Total Pages580
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size21 MB
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