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________________ MAN 150] स्मृतियों के वातायन में हस्ती थे। वे हिन्दी के प्राध्यापक थे। हिन्दी के विकास में उनका उस क्षेत्र में विशेष योगदान था। राष्ट्रभाषा प्रचार से जुड़े थे और भावनगर की न.च. गाँधी महिला कॉलेज के प्राचार्य थे। अच्छे वक्ता और स्वाध्यायी थे। उनकी व्यक्तिगत लाईब्रेरी अति समृद्ध थी जो उनकी वाचन प्रियता की द्योतक थी। वे नई कॉलेज के संचालक मंडल के सदस्य थे, और डॉ. मजीठियाजी के भी मित्र थे। वैसे डॉ. श्री अंबाशंकरजी नागर के कारण मेरा भी उनसे थोड़ा परिचय था। वे मेरी वाक्कला से परिचित थे। ____ तत्कालीन सौराष्ट्र युनिवर्सिटी में कॉलेज में नये विषय स्पेश्यल (ओनर्स) प्रारंभ करने के लिए विषय के दक्ष प्राध्यापकों की कमिटी बनाई गई। हिन्दी के लिए डॉ. मजीठिया एवं प्रा. जयेन्द्रभाई को नियुक्त किया गया। ___उस समय गुजरात की प्रत्येक युनिवर्सिटी में ऐसा नियम था कि जहाँ भी ओनर्स विषय प्रारंभ किया जाय वहाँ विभाग में एक प्रोफेसर की नियुक्ति आवश्यक की जाये। तद्नुसार वहाँ प्रोफेसर की पोस्ट की विज्ञप्ति दी गई थी। मैं उस विज्ञापन के आधार पर आवेदन तो दे चुका था। मैंने पुराने परिचय के संदर्भ में डॉ. मजीठियाजी से चर्चा की। अपने कॉलेज की बिगड़ती हालत को बताया। मैं स्वयं एकदिन भावनगर गया। वहाँ डॉ. मजीठियाजी एवं श्री जयेन्द्रभाई से मिला। डॉ. नागरजीने भी श्री जयेन्द्रभाई को मेरे नाम का प्रस्ताव किया था। ___डॉ. मजीठियाजी व्यंग्य लेखक, कहानीकार, उपन्यासकार थे। उन्होंने प्रा. नर्मदभाई से स्पष्ट कहा था (जो मुझे उन्होंने बादमें बताया था)कि आप यदि शेखरचन्द्र जैन को प्राध्यापक के रूप में लें तो हम सब कमेटीवालों का पूर्ण समर्थन रहेगा। डॉ. शेखरचन्द्र पी-एच.डी. हैं, अनुभवी हैं, अच्छे अध्यापक हैं। इस प्रकार पूर्वभूमिका ! बंध गई थी। । मैं प्राध्यापक के रूप में पसंद कर लिया गया। मेरे जीवन की यह सबसे उत्तम उपलब्धि थी। एक बहुत बड़े काले भविष्य से बच गया था। बेकारी के राक्षस के पंजों से छूट गया था। मुझे लगा कि मेरा भाग्य, मेरा पुण्य एवं ।। मेरी मैत्री काम आई। भावनगर में प्रारंभ १५ जून १९७२ को मैंने भावनगर में एक नये अध्याय के साथ जीवन का प्रारंभ किया। मैं १९७२ से १९८८ तक १६ वर्ष भावनगर रहा। भावनगर शहर है पर छोटा- अन्य शहरों की तुलना में। छोटा पर खूबसूरत शहर। बड़े-बड़े प्लॉटो में घनी वृक्षावली के बीच लोगों के घर। शांतिप्रिय शहर। पूरे सौराष्ट्र में सर्वाधिक साक्षर शहर। महाराजा कृष्णकुमार जैसे प्रजावत्सल राष्ट्रीयता के रंग में रंगे राजा की जिस पर छत्र छाया रही। सरप्रभाशंकर पटनी जैसे कुशल विद्वान मंत्री का जिसे मार्गदर्शन मिला। जिसे कवि मेघाणी की कर्मभूमि बनने का गौरव मिला। जिसके शामलदास कॉलेज में पू. गांधीजीने शिक्षा प्राप्त की। जो नानाभाई भट्ट, गिजुभाई बधेका एवं हरभाई त्रिवेदी जैसे महान राष्ट्रभक्त बालशिक्षा के पुरोधा एवं शिक्षण शास्त्रियों द्वारा सिंचित भूमि रही। जहाँ शिक्षा और शिक्षकों का सदैव सन्मान रहा। जहाँ का शामलदास कॉलेज पू. गांधीजी के कारण विश्वप्रसिद्ध । हुआ। जहाँ का केन्द्रीय नमक संस्थान विश्वप्रसिद्ध संस्थान है। जहाँ के भावनगरी गांठिये चटाकेदार होते हैं। ऐसे भावनगर में पहली बार ट्रेन से आया। भारत का यही एक ऐसा रेल्वे स्टेशन है जहाँ महिलायें कुली हैं। यहाँ के लोग इतने शांतिप्रिय, अहिंसक हैं कि कभी-कभी लोग व्यंग्य में कहते कि भावनगर तो रिटायर्ड व्यक्तियों का भजन गानेवालों का शहर है। सरकारें भी जैसे इस शहर के प्रति उदासीन ही रहीं। कोई बड़ी इन्डस्ट्रीज की स्थापना नहीं हुई, न विकास के साधन लगाये गये। उस समय यहाँ मीटरगेज ही थी और भावनगर से महुवा तक
SR No.012084
Book TitleShekharchandra Jain Abhinandan Granth Smrutiyo ke Vatayan Se
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShekharchandra Jain Abhinandan Samiti
PublisherShekharchandra Jain Abhinandan Samiti
Publication Year2007
Total Pages580
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size21 MB
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