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जाये। गोमतीपुर में किराये के मकान में एक चैत्यालय बनाया। परंतु मकानमालिक के केस करने पर समाज को | वह मकान खाली करना पड़ा। तब पिताजीने, श्री देवकीलालजी, श्री पंचमलालजी, सेठश्री मातादीनजी, श्री
घासीरामजी व श्री नानकरामजी तथा श्री ग्याप्रसादजी की मदद से दिन-रात मेहनत कर गोमतीपुर में मंदिर के लिए एक छोटा सा मकान खरीदा। आज गोमतीपुर के मंदिर की विशालता व भव्यता की नींव में वे नींव की ईंट बने। उनकी लगन, धर्मनिष्ठा व लोगों के सहयोग से यह कार्य संपन्न हो सका।
नारियली व्यक्तित्व
मेरे पिताजी का जीवन जो संघर्ष का जीवन रहा। इस संघर्ष और विशेष श्रम के कारण वे कुछ चिड़चिड़े हो गये। क्रोध की मात्रा भी उनमें बढ़ गई। इस क्रोध के पीछे एक कारण यह भी था कि वे कभी गलत बात या कार्य
न करते और अन्य कोई करे तो उसे सहन नहीं कर पाते थे। वे शिस्त के आग्रही और सामाजिक मर्यादा के | पक्षधर थे। मुझे लगता है कि बचपन के सुख भोगनेवाले उन्हें यौवन में कड़ी मजदूरी करनी पड़ी। अतः कुछ । रुखापन इससे भी बढ़ा।
वे प्रातः ५ बजे उठकर म्यु. के पब्लिक नल से पानी भर लेते। नल को माँजते थे क्योंकि बाद में वह शुद्धता नहीं मिल पाती थी। मैं लारी निकालकर डब्बे आदि रख देता। उनके क्रोध से हम सभी भाई-बहन बहुत डरते थे। हम हमेशा यही कोशिश करते कि हम ऐसे काम करें कि वे खुश रहें। रात्रि को उनके पाँव दबा देते तो खुश हो
जाते। एक ओर बराबर डाँटते रहते तो दूसरी ओर ऐसा कोई दिन नहीं गया जिस दिन फेरी से लौटते समय कुछ । न कुछ खाने को न लाये हों। प्रातः स्वयं दूध वाले के यहाँ से अपने बर्तन में दूध दुहाकर लाते उसमें घी डालकर | जबरदस्ती हम लोगों को पिलाते। ___ इस जगह हम अपने निवास नागोरी चॉल का भी कुछ वर्णन करना चाहेंगे जो हमारे जीवन का एक अभिन्न अंग रहा है।
नागौरी चाल जिसमें मील मजदूर, छोटीमोटी फेरी करनेवाले व्यापारी रहते थे। पीछे की लाईनो में रबारी । (गोपालक) और हरीजनों की बस्ती थी। एक ही नल था जिस पर अपार भीड़ रहती। पानी के लिये प्रायः लड़ाई झगडे, गाली-गलौच और कभी-कभी लोगों की आपस में हाथापाई भी हो जाती। यहाँ चाली में कुछ गुण्डा टाईप के लोगों का माफियापन चलता। यह चाली ऐसे विस्तार में है जहाँ थोड़ी सी भी बारिश आती तो पूरा तालाब ही । बन जाता। न उस समय रोड़ थे, न गटर की सुविधा थी। पानी बरसता तो दो तीन दिन तक बड़ी परेशानी रहती। । पर हम सब बच्चों के लिये तो वही भरा हुआ गंदा पानी आधुनिक भाषा में कहे तो 'वाटर पार्क' बन जाता। उसमें खूब , नहाते। पानी पूरी गंदगी के साथ बहता पर हम लोगों को क्या पता की गंदगी क्या है बस एक मस्ती रहती थी....
ऐसी ही एक रात खूब पानी भर गया। घर का सामान दीवारों पर लगे पाटियों पर, मचान पर चढ़ाया। लारी पर रख दिया। चिंता थी घर में पानी न घुस जाय। इधर मेरी छोटी बहन पुष्पा को न्युमोनिया हो गया था। लगता था इसका जीवन दवा के अभाव में पानी में ही बह जायेगा। रात किसी तरह काटी। जाते भी कहाँ? पास में कोई डॉक्टर तो था नहीं। और फिर पानी भी बाढ़ की तरह बढ़ रहा था।
सुबह कम से कम चार-पाँच फुट पानी में जैसे-तैसे रोड़ पार कर गोमतीपुर में श्री गोविंदप्रसादजी वैद्य के । यहाँ पिताजी गये। मात्र रोग का वर्णन सुनाकर दवा ले आये। पुष्पा की जीवन डोरी लंबी थी सो बच गई। पानी भी उतरा। गाड़ी पटरी पर चलने लगी।