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जन सामान्य के बीच पहुँचाना उनका प्रशंसनीय लक्ष्य है।
विभिन्न पुरस्कारों से पुरस्कृत डॉ. शेखर जीवन के अमूल्य क्षणों को जीने में सिद्धहस्त हैं। अपने लेखन में, । प्रवचन में कथ्य विषय को साधु, श्रावक, सामान्य श्रोता/पाठक तक ठेठ भाषा में अहिचक / लिखते हैं | कहते हैं। । आश्चर्य है अस्पताल, लेखन, प्रवचन, प्रवास, मित्रों-परिस्थितों, रिश्तेदारों से संबंधों का निर्वाह प्रभृति । अनेक व्यस्तताओं के बीच डॉ. शेखर जैसा व्यक्तित्व ही निर्वाह करने में सक्षम है ऐसा मैं मानता हूँ। अ.भा.दि.
जैन विद्वत् परिषद के अधिवेशनों में साक्षात भेंट कर चुके डॉ. शेखर की मधुर मुस्कान, आत्मीयता, सहज
सरलवाणी से प्रभावित मेरी पत्नी (श्रीमती विमलाजी) का कथन सचमुच उपयुक्त है “कर्म निष्ठ व्यक्ति ही | सफलता के सोपानों पर बढ़ते हैं" और डॉ. शेखर उनमें अग्रणी हैं।
____ परमपूज्या ग.र.आ. ज्ञानमती माताजी के आशीर्वाद, ब्र. श्री रवीन्द्रकुमारजी, पद्मश्री कुमारपाल देसाई के । सत्परामर्श एवं विनोदभाई 'हर्ष' के प्रधान संयोजन में सृजित अभिनन्दन ग्रंथ जैन समाज के प्रत्येक सदस्य को । उत्साह / प्रेरणा / सृजन के प्रति नवचेतना का संचार करेगा यह विश्वास है। । डॉ. शेखर दीर्घायु हों, सत्साहित्य सर्जन में दत्तचित्र रहें उन्हें श्री जिनेन्द्रदेव सदैव सहायक रहें।
मोतीलाल जैन 'विजय' (कटनी)
- नारियली व्यक्तित्व के धनी मेरी डॉ. शेखरचंद्रजी से प्रथम मुलाकात उस समय हुई जब वे शिरोमणी सोसायटी में चैत्यालय का निर्माण करने का कार्य कर रहे थे। उस समय मैंने उनके काम करने का जो तरीका और उत्साह देखा उससे मैं बहुत प्रभावित हुआ। इसके पश्चात मैं उनके साथ 'श्री आशापुरा माँ जैन अस्पताल' के साथ जुड़ा। मैं निरंतर यह देखता रहा और अनुभव करता रहा कि- इस उम्र में भी एक व्यक्ति कितना काम कर सकता है! यद्यपि यह कार्यशक्ति उनके उत्साह के कारण ही इतनी प्रबल थी।
जब मैंने उनके जीवन के विषय में जाना और समझा तब मुझे लगा कि यह संकल्प एवं मनोबल का दृढ़ व्यक्तित्व है। उनके संपर्क में आकर मुझे यह गुण ज्ञात हुआ कि वे स्पष्ट वक्ता हैं। बिना किसी लाग लपेट के सत्य को प्रस्तुत करते हैं। इससे उनकी बात का वज़न भी लोगों पर पड़ता है। यह अलग बात है कि वर्षों तक व्यवस्थापन में रहने के कारण एवं मिलिट्री ट्रेनिंग के व्यक्ति होने के कारण असत्य-अन्याय सहन नहीं कर पाते हैं और इसलिए कभी-कभी स्पष्ट कहने में उनका क्रोध भी झलक उठता है। सामने वाला उनके क्रोध से कभीकभी उनके प्रति नाराज़ भी हो जाता है, पर गहराई से सोचते हैं तो लगता है कि उनकी बात सही थी। कहा भी जाता है कि 'सत्य कड़वा ही होता है। वे कड़वा बोलें और हम कड़वा पचा सकें यह शक्ति हम में भी होनी चाहिए। __ जैन दर्शन जैसे गहन विषय को वे इतनी सरलता से प्रस्तुत करते हैं कि छोटा बालक भी उनकी बात को समझ सके। वे जैनधर्म को कोरा क्रियाकाण्ड नहीं मानते, अपितु उसे आधुनिक विज्ञान के परिप्रेक्ष्य में देखते हैं, और उसे इतनी गहराई से समझाते हैं कि धर्म जीवन का ही अंग लगने लगता है। वे मंच पर जिस निर्भीकता से और सरलता से तथा साहित्यिक रूप से कार्यक्रम का संचालन करते हैं वह उनकी एक विशेष शैली है, और यही कारण है कि अनेक व्याख्यानों में उनका व्याख्यान लोग बड़े ही मनोयोग से सुनते हैं। यह वक्तृत्व कला जैसे उन्हें ईश्वरीय भेट है।